Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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धन्ना सेठ पुत्री मम्मा और चिलात चोर
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* कित ऋण से मवत हो कर भात-रक्षा के पुण्य का भागी बनेगा देव ! आप मुझ ही मार डालिए---ज्येष्ठ पुत्र ने आग्रह के साथ कहा।
बड भाई को रोकते हए छोट भाई ने, इसी प्रकार सभी अपने को मिटा कर अन्य सव का संकट मिटाने को तत्पर हुए । तव धन्ना सेठ ने कहा--"किसा के भी मरने की
आवश्यकता नहीं है । सुसुमा का यह मृत शरीर ही इस समय हमारे लिए उपयोगी होगा हा, देव ! आज हम अपनी प्राणप्यारी पुत्री के मृत शरीर का भक्षण करेंगे। विवशता का नही कराता ।” सब ने ऐसा ही किया और अग्नी से आग्न प्रज्वलित कर खा-पी कर घर आ गये। पुत्रो का लौकिक क्रिया-कर्म कर के शाक निवृत्त हुए । कालान्तर में भगवान महावार का उपदेश सुन कर धन्ना सेठ निग्रंय बन गए और ग्यारह अंग का ज्ञान कर तथा तप-संयम की आराधना कर प्रथम स्वर्ग में गये । वहां से महाविदेह में जन्म लेवेंगे और प्रवजित हो कर सिद्धगति प्राप्त करेंग ।
उपरोक्त कथा पर से बोध देते हुए निग्रंथ नाथ भगवान् फरमाते हैं कि 'हे, साधुओ! जिस प्रकार चिलात चार सुसुमा में मूच्छित हो कर दुःखी हुआ, उसी प्रकार जो माधुसाध्वी खान-पान में गद्ध हो कर स्वाद के लिए, शरीर पुष्ट बनाने के लिए, इन्द्रियों के पोषण के लिए और विषय इच्छा से आहारादि करेंगे, वे यहाँ भी निन्दनीय जीवन बितावेंगे
और परभव में घोर दुःखों के भोक्ता बनेंगे। और जिस प्रकार धन्य सार्थवाह ने, रस, वर्ण, गन्ध तथा शरीर पुष्टि के लिए नहीं, किन्तु भयानक अट वो का पार कर के सुखपूर्वक
गजगृह पहुँचने के लिए-रूक्ष-वृत्ति से पुत्री का मांस खाया और राजगृही में पहुँच कर सुखी हुआ, उसी प्रकार साधुसाध्वो भी, अशुचि एवं राग के भंडार तथा नाशवान शरीर के पोषण, संवर्धन तथा बल के लिए नहीं, किन्तु मोक्ष प्राप्ति के लिए (सिद्धिगमणसंपावणदाए) रूक्षभाव से आहार पानी का सेवन करेंगे, वे वन्दनीय-पूजनीय एवं प्रशंसनीय होगे तथा परमानन्द को प्राप्त करेंगे।
(ज्ञाताधर्म कथा सूत्र के १८ वें अध्ययन में इतनी ही कथा है, परन्तु आवश्यक बृहद्वृत्ति आदि में चिलात डाक की आगे पापी से धर्मी होने की कथा लिखी है, उसका सार निम्नानुसार है)
डाकू चिलात ने सुसुमा का मस्तक काट कर गले में लटकाया और आगे भागा। उसे पीछे से शत्रुओं का भय तो था ही। आगे बढ़ते हुए उसे एक तपस्वी संत ध्यानस्थ दिखाई दिये । उसने उनसे रोषपूर्वक कहा--"मुझे संक्षेप में धर्म बताओ, अन्यथा तुम्हारा भी मस्तक काट लूंगा।" तपस्वी संत ने ज्ञानोपयोग से जाना कि सुलभबोधि जीव है। उन्होंने कहा--"उपशम, विवेक, संवर।" चिलात एक वृक्ष के नीचे बैठ कर सोचने लगा
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