Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पहुँच गया । सेठानी ने नरेश को अपने घर भोजन करने का आग्रह पूर्ण निवेदन किया । महाराज ने उसका आग्रह स्वीकार किया । राजा स्नान करने बैठा । उत्तम कोटि का अभ्यंगन उबटन कर सुगन्धित जल से स्नान कर रहा था कि अचानक अंगुली में से रत्न - जड़ित अंगूठी निकल कर गृहवापिका में गिर पड़ी। राजा मुद्रिका ढूँढने लगा, तो सेठानी ने दासी को आदेश दिया, जिसने उस वापिका का जल दूसरी ओर निकाल दिया । राजा ने देखा उस वापिका में दिव्य आभूषण चमक रहे हैं। उनके बीच में राजा की मुद्रिका तो निस्तेज दिखाई दे रही थी । राजा के पूछने पर दासी ने बताया कि - " शालिभद्र और उनकी पत्नियों के देव प्रदत्त आभूषण प्रतिदिन उतार कर इस वापिका में डाले जाते हैं । ये वे ही आभूषण हैं। महाराजा ने सपरिवार भोजन किया और बहुमूल्य वस्त्राभूषण की भेंट स्वीकार कर राज्यमहालय पधारे ।
तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
शालिभद्र के मन में संसार के प्रति विरक्ति बस गई। अब वह पिता के पथ पर चल कर आत्म-स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहता था। सद्भाग्य से वहाँ चार ज्ञान के धारक आचार्य धर्मघोष मुनिराज पधारे। शालिभद्र हर्षित हुआ और रथारूढ़ हो कर वंदना करने चला | आचार्यश्री और सभी साधुओं की वन्दना की । आचार्यश्री ने धर्मोपदेश दिया और पूर्ण स्वाधीन होने का मार्ग बताया । शालिभद्र ने घर आ कर माता को प्रणाम
कर कहा
'मातेश्वरी ! मैने आज निग्रंथ- गुरु का धर्मोपदेश सुना । मुझे उस धर्मोपदेश पर रुचि हुई। यह धर्म संसार के समस्त दुःखों से मुक्त करने वाला है ।"
" पुत्र ! तुने बहुत अच्छा किया। तू उन धर्मात्मा पिताजी का पुत्र है, जिनके रग-रग में धर्म बसा हुआ था । तुझे धर्म का आदर करना ही चाहिये " - माता ने पुत्र की धर्मरुचि देख कर मतोष व्यक्त किया ।
"
' मातेश्वरी ! मुझ पर प्रसन्न हो कर अनुमति प्रदान करें। मैं भी अपने पिताश्री का अनुकरण कर के धर्मघोष आचार्य के समीप दीक्षित होना चाहता हूँ ।" - शालिभद्र ने दीक्षित होने की अनुमति माँगी ।
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" पुत्र ! तेरा विचार उत्तम है । परन्तु साधुता का पालन करना सहज नहीं है । लोहे के चने चबाना, तलवार की धार पर चलना और भुजाओं से महासागर को पार करने के समान दुष्कर है। तू सुकुमार है । तेरा जीव भोगमय रहा है। दुख एवं परीषद् को जानता ही नहीं है । तुझ से संयम की विशुद्ध साधना कैसे हो सकेगी ?"
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