Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 419
________________ ४०२ तीर्थकर चरित्र--भाग ३ ..चयनकककककककककककककबन्नकवचकवत मन्वन्दन्दपककककककका के आदान-प्रदान सम्बन्धी विवरण सुनाने के साथ अपने निश्चय की घोषणा करते हुए कहा; “अब वैशाली राज्य के साथ हमारा लड़ना अनिवार्य हो गया । तुम सभी शीघ्र ही अपने-अपने राज्य में जाओ और स्वयं शस्त्रसज्ज हो कर अपने तीन हजार हाथी, तीन हजार घोड़े, तीन हजार रथ और तीन करोड़ पदाति सैनिकों के साथ सभी प्रकार की सामग्री से सन्नद्ध हो कर आओ।" कणिक का आदेश पा कर कालकुमार आदि दसों बन्धु अपनी-अपनी राजधानी की ओर गये और अपनी सेना के साथ सन्नद्ध हो कर उपस्थित हुए। चेटक-कूणिक संग्राम कणिक भी अपनी सेना के साथ चल निकला। उसके पास कुल ३३ हजार हाथी इतने ही घोड़े और रथ थे और ३३ कोटि पदाति सैनिक थे। ___जब चेटक नरेश को कूणिक के चढ़ आने की सूचना मिली, तो उन्होंने काशीकोशल देश के अपने नौ मल्लवी और नौ लिच्छवी गण राजाओं को बुलाया और उन सब के समक्ष कूणिक के साथ उठा हुआ विवाद प्रस्तुत कर पूछा-- “कहिये, अब क्या किया जाय । वेहल्ल-वेहास और उसके हार-हाथी कणिक को लौटा दिये जायँ या युद्ध किया जाय ?" "नहीं, स्वामिन् ! भयभीत शरणागत को लौटाना उचित नहीं है और न राजकुल के योग्य है । अब तो युद्ध ही करना उचित है और हम सभी आपके साथ है"-- अठारह गण राजाओं ने कहा। "ठीक है। अब आप जाओ और सभी अपनी विशाल सेना के साथ शीघ्र ही युद्ध स्थल पर पहुँचो"--चेटक ने आदेश दिया। चेटक नरेश की अधीनता में सत्तावन हजार हाथी, इतने ही घोड़े, रथ और सत्तावन कोटि पदाति सैनिक रणस्थलि पर आये। कूणिक ने सेना का 'गरुडव्यूह' बनाया ओर चेटक ने अपनी सेना का 'शकटव्यह' बनाया। युद्ध प्रारम्भ हो गया। विविध प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सज्ज सेनाएँ लड़ने लगी। अश्वारोही अश्वारोही से, पदाति पदाति से और रथिक रथिक से भिड़ गया। मारकाट मच गयी। कणिक की सेना के ग्यारहवें भाग का सेनापति 'कालकुमार' अपने तीन-तीन हजार हाथी, घोड़े, रथ और तीन कोटि पदाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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