Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मार श्रमण से प्रदेश का समागम
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-- 'भगवन् ! आपको राजा से कोई प्रयोजन नहीं । आप श्वेताम्बका पधारें। हाँ भी बहुत से ईश्वर, तलवर, सेठ सार्थवाह आदि हैं जो आपकी न्द ना करेंगे, सेवा भक्ति करेंगे और आहारादि प्रतिलाभ कर प्रसन्न होंगे।'
--"ठ क हैं । मैं विचार करूँगा'--महात्मा ने कहा ।
चित्त सारथि गुरुदेव को वन्दना कर के लौटा और स्वस्थान आया फिर रथारूढ होकर अनुचरों के साथ श्वेताम्बिका आया । उसने मृगवन उद्यान के उद्यानपालक से कहा;--' महर्षि केशीकुमार श्रमण अपने श्रमण परिवार के साथ ग्रामानुग्र म विचरते हुए यहाँ पधारें, तो तुम उनकी विनय पूर्वक वन्दना करना नमस्कार करना और उन्हें स्थान पाट आदि प्रदान करना, फिर उनके पदार्पण की सूचना मुझ तत्काल देना।"
चित्त प्रदेशी राजा के समक्ष उपस्थित हुआ और जितशत्रु की भेंट समपित कर उस राजा की नीतिव्यवहार आदि स्थिति के निरीक्षण का परिणाम सुनाया और स्वस्थान आया और सुख पूर्वक रहने लगा।
केशीकुमार श्रमण से प्रदेशी का समागम
कालान्तर में मुनिराज श्री केशीकुमार श्रमण अपने ५०० शिष्यों के साथ श्वेताम्बिका पधारे और मगवन उद्यान में बिराजे । वनपालक ने चित्त महाशय को गुरुदेव के पधारने की सूचना दी। चित्त अति प्रसन्न हुआ। वह आसन से नीचे उतरा और उस दिशा में सात-आठ चरण चल कर अरिहंत भगवंत को नमस्कार किया और गुरुदेव केशीकुमार श्रमण को नमस्कार किया, तत्पश्चात् वनपालक को भरपूर पुरस्कार दिया। फिर रथारूढ़ हो कर सेवकगण सहित मृगवन उद्यान में गया । गुरुदेव को वन्दन-नमस्कार किया और धर्मोपदेश सुना । अन्त में निवेदन किया; --
"भगवन् ! प्रदेशो राजा नास्तिक, अधर्मी एवं क्रूर है, हिंसक है । यदि आप उसे धर्मोपदेश देंग, तो बहुत उपकार होगा। उसकी अधार्मिकता दूर होगी। वह धर्मात्मा हो जायगा। इससे बहुत-से जीवों और श्रमणों तथा भिक्षुओं का भला होगा। इतना ही नहीं, समस्त देश का हित होगा।"
--" देवानुप्रिय ! प्रदेशीराजा साधुओं के सम्पर्क में ही नहीं आवे, तो उसे धर्मोपदेश कैसे दिया जाय ?"
--- "भगवन् ! कम्बोज देश के चार अश्व भेंट स्वरूप प्राप्त हुए थे। उनके निमित्त
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