Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केश कुमार श्रमण और प्रदेशी को चर्चा
( ६ ) प्रश्न--" भगवन् ! एक सबल, नीरोगी, कलावंत कुशल युवक एक साथ बाणों को पाँच लक्ष्यों पर छोड़ सकता है, उसी प्रकार एक निर्बल कला-विहान बालक, पाँच बाण भिन्न लक्ष्यों पर एक साथ छोड़ने में समर्थ हो जाता, तो मैं मान लेता कि जाव और शरोर मित्र है । शरीर के सचल निर्बल, कुशल अकुगल होने से जोव वैसा नहीं हो जाता । परंतु प्रत्यक्ष में वैसा नहीं दिखाई देता । इसलिये मैं जोव और शर र को एक मानता हूँ ?'
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उत्तर--" सबल युवक पुरुष, नवीन एवं दृढ धनुष से बाण छोड़ने में समर्थ होता है, वही युवक जीर्णशोण धनुष से उसी प्रकार वाण छोड़ने में समर्थ नहीं होता -- शक्ति होते हुए भी साधन उपयुक्त नहीं होने के कारण निष्फल होता है । शरीर रूपी साधन के भेद से भी जोव और शरोर का भिन्नत्व स्पष्ट हो जाता है ।
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(७) प्रश्न - - " भगवन् ! एक सबल सशक्त दृढ़ युवा पुरुष जितना लोह आदि का भार उठा सकता है, उतना निर्बल, अशक्त, रोगी, जराजीर्ण और विगलित गात्र पुरुष नहीं उठा सकता । यही जीव और शरीर की ऐक्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है । तब में भिन्नता कैसे मानूँ ?
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उत्तर-पूर्व के उत्तर में जीर्ण धनुष का उदाहरण है, तो इस प्रश्न के उत्तर में जीर्ण कावड़ ('विहंगिया' = भारयष्टिका = बहँगी ) का उदाहरण है । बलवान् व्यक्ति नूतन सुदृढ़ कावड़ से तो बहुत-सा भार उठा सकता है, परंतु जीर्णशीर्ण टूटो कावड़ से नहीं । जो व्यक्ति युवावस्था में अधिक भार उठा सकता था, वही वृद्धावस्था में खटिया से उठ कर पानी भी नहीं पी सकता, या उठ भी नहीं सकता । यह शरीर और जीव की भिन्नता
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का प्रत्यक्ष प्रमाण 1
(८) प्रश्न -- मैने एक चोर को पहले तुला से तोला, फिर अंगभंग किये बिना ही श्वास रूंध कर मार डाला और मारने के बाद फिर तोला, तो भार में कुछ अन्तर नहीं आया । तोल में जितना जीवित अवस्था में था उतना ही पूरा मरने पर भी हुआ । यदि किञ्चित् मात्र भी अन्तर होता, तो में जीव और शरीर का भिन्नत्व मान लेता । भार में कमी नहीं होने का अर्थ ही यह है कि जीव और शरीर एक ही है ?"
उत्तर--" जीव अरूपी है, इसलिये उसमें भार होता ही नहीं, फिर न्यूनाधिक कैसे हो ? क्या तुमने कभी खाली और वायु से भरी हुई बस्ति (वत्थि = भस्त्रिका = मशक ) तोली है, या तुलती हुई देखी ? ।”
-"हां, महात्मन् ! देखी है ।"
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