Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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४३२ ဖ• ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
तीर्थंकर चरित्र-भाग ३
-“इसी प्रकार हे राजन् ! प्रथम के तीन प्रकार के पुरुषों के समान तुम भी व्यवहार करने योग्य हा, अयोग्य नहीं"-महात्मा ने कहा ।
(११) प्रश्न-“भगवन् ! आप तो चतुर दक्ष एवं समर्थ हैं, क्या आप शरीर में से जीव निकाल कर हस्तामलकवत दिखा नहीं सकते ?"
उत्तर-“प्रदेशी ! वृक्ष के पत्ते, लता और घास हिल रहे हैं, कम्पित हो रहे हैं, इसका क्या कारण है । क्यों हिल रहे हैं ये ?"
-" भगवन् ! वायु के चलने से पान-लता आदि कम्पित हो रहे हैं।" -" राजन् ! तुम सरूपी शरीर वाले वायुकाय को देखते हो"-महर्षि ने पूछा । --"नहीं, भगवन् ! मै वायु को देख नहीं सकता।"
-"प्रदेशी नरेश ! जब तुम सरूपी शरीर सम्पन्न वायुकाय को भी नहीं देखदिखा सकते, तो मैं तुम्हें अरूपी आत्मा कैसे दिखा सकता हूँ ? कुछ विषय ऐसे हैं कि जिन्हें छद्मस्थ-अपर्णज्ञानी पूर्ण रूप से नहीं देख सकते । जैसे--
१ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्तिकाय ३ आकाशास्तिकाय ४ अशरीरी जीव ५ परमाणुपुद्गल ६ शब्द ७ गन्ध ८ वायु ९ अमुक जीव तीर्थकर होगा या नहीं और १० अमुक जीव सिद्ध होगा या नहीं।
उपरोक्त विषय छद्मस्थ मनुष्य सर्वभाव से जान-देख नहीं सकता। सर्वज्ञ-सर्वदर्शी ही जान-देख सकता है । इसलिए हे राजन् ! आँखों से प्रत्यक्ष देखने का विषय नहीं होने के कारण हा जीव के अस्तित्व पर अविश्वासी नहीं रहना चाहिये । रूपा के समान अरूपी द्रव्यों के अस्तित्व पर श्रद्धा करनी चाहिये ।"
(१२) प्रश्न-भगवन् ! हाथी और कुंथए का जीव बड़ा-छोटा है या समान ? -" हाथी और कुथुए का जीव समान है, वड़ा-छोटा नहीं"-महात्मा का उत्तर ।
--" भगवन् ! यह कैसे हो सकता है ? हाथी और कुंथुए के शरीर, खान-पान, क्रिया-कर्म आदि में महान् अन्तर है, हाथी विशाल है, तो कुंथुआ अति अल्प, फिर समानता कैसे हो सकती है"-राजा ने प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले भेद का तर्क उपस्थित किया।
- राजन् ! यह अन्तर शरीर से सम्बन्धित है, जीव से नहीं । जैसे-एक भवन में, भवन के कक्ष में एक दापक रखे, तो वह दीपक उस सारे भवन अथवा वक्ष को प्रकाशित करता है । यदि उस दीपक पर कोई टोकरा रख दे, तो वह भवन को प्रकाशित नहीं कर के टोकरे को ही प्रकाशित करेगा। टकरा हटा कर हंडा, पतीली यावत् छोटा प्याग रख दे, तो उ: दापक का पूरा प्रकाश उस प्याले में हो रहेगा, कमरे या घर में नहीं
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