Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र--भाग ३
से मैं शीघ्र ही राजा को लाऊँगा"-चित्त वन्दन-नमकार कर के चला गया ।
दूसरे दिन चित्त राजा के समीप आया और नमस्कार कर निवेदन किया;--
-"स्वामिन् ! कम्बोज के जो चार घोड़े आये हैं, वे सध गए हैं । अब उनको देख लीजियेगा।"
-"हां, तुम उन्हें रथ में जोत कर लाओ। मैं आता हूँ।"
राजा और चित्त रथारूढ़ हो कर निकले । नगर के बाहर पहुँच कर चित्त ने रथ की गति बढ़ाई । शीघ्र गति से कई योजन तक रथ दौड़ाया। राजा धूप प्यास आदि से घबरा गया, थक गया। उसने चित्त को लौटने का आदेश दिया। रथ लौटा कर चित्त मृगवन के निकट लाया और निवेदन किया;--
__ "महाराज ! आपकी आज्ञा हो तो इस उपवन में विश्राम ले कर स्वस्थ हो लें।" राजा तो चाहता ही था । वे मृगवन में पहुँचे । रथ से नीचे उतरे । चित्त ने रथ से अश्वों को खोल दिया और राजा के साथ विश्राम करने लगा।
उस समय महर्षि केशीकुमार श्रमण, महा परिषद् को धर्मोपदेश रहे थे । स्वस्थ होने पर राजा का ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ। उसने चित्त से पूछा ;--
-"चित्त ! ये कौन जड़ मूड़ अज्ञानी हैं ? अज्ञानी होते हुए भी इनका शरीर दीप्त, कान्ति युक्त शोभित एवं आकर्षक लग रहा है ?" ये लोग क्या खाते-प ते हैं और इस विशाल जन-सभा को क्या देते हैं ? इतनी बड़ा सभा में ये धीरगम्भीर वाणो से क्या सुना रहे हैं ? इन्होंने इस वन की इतनी भूमि रोक ली कि मैं इच्छानुपार इसमें विचरण भी नहीं कर सकता?"
___ "स्वामिन् ! ये भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी की शिष्य-परम्परा के श्री केशीकुमार श्रमण हैं । ये महान् श्रमण हैं, महाज्ञानी हैं और विशुद्ध संयमी हैं । ये प्रासुक-निर्दोष आहार-पानी भिक्ष से प्राप्त कर जीवन चलाते हैं । ये महान् उत्तम श्रमण हैं"-चित्त ने परिचय दिया।
-"क्या ये सम्पर्क करने के योग्य हैं ? इनके पास चल कर परिचय करना एवं वार्तालाप मरना उचित है"-राजा की उत्सुकता बढ़ी । उसने पूछा।
- हाँ स्वामिन् ! ये सर्वथा योग्य हैं । इनका परिचय करने से आपको लाभ ही
होगा।"
केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी की चर्चा राजा चित्त क साथ महर्षि के निकट आया और पूछा ;--
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