Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वल्कलचं री चरित्र
कककककककककक कककककक ककककककककककक ककककककक कककक ककककककककककककक
कूणिक की तो मति ही उलटा थी । उसने सोचा- " चक्रवर्ती तो सातवीं तक जा सकता है और में छठा नरक तक ही ? में क्या चक्रवर्ती से कम हूँ ? हे कोई मुझ पर विजय प्राप्त करने वाला ? " उसने रानी पद्मिनी को "स्त्री-रत्न' बनाया, वैसे ही सनापति आदि को पंचेन्द्रिय-रत्न और एकेन्द्रिय-रत्न कृत्रिम बनायें । सेना लेकर उसने विजयप्रयाण किया । अनेक देशों पर विजय प्राप्त करता हुआ वह वैताढ्य पवत की तिमिस्रा गुफा तक पहुँचा और द्वार खोलने के लिये दण्ड प्रहार किया । द्वार रक्षक कृतमाल देव ने उसे रोका, परन्तु वह चक्रवर्ती होने के गर्व में अड़ा रहा, तो देव ने उसे वहीं भस्म कर दिया । कूणिक मर कर छठा नरक में नैरयिक हुआ ।
कूणिक का उत्तराधिकारी उसका पुत्र 'उदयन' हुआ, जो प्रबल पराक्रमी श्रमणोपासक हुआ। वह जिन धर्म का अनन्य उपासक था ।
वल्कलचोरी चरित्र
पोतनपुर नरेश सोमचन्द्र की धारिनी रानी, स्नेह पूर्वक अपने पति के मस्तक के बाल संवार रही थी कि उसकी दृष्टि एक श्वेत केश पर पड़ी। उसने पति से कहा" स्वामिन् ! दूत आ गया है ।"
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- " कहाँ है वह दूत ? " - इधर उधर _" यह रहा धर्मराज का दूत" - कहते पति की हथेली पर रखा - " यह युवावस्था को सूचना देने आया है- देव !
!"
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देखते हुए राजा ने पूछा ।
हुए गनी ने वह श्वेत केश उखाड़ कर नष्ट कर के वृद्धावस्था के आगमन की
राजा खेदित हुआ, तो रानी ने कहा- " खेद करने की आवश्यकता नहीं, सावधान होना चाहिए।"
- " मैं जरा के दूत को देख कर खेदित नहीं हुआ। मुझे खेद इस बात का है कि मेरे पूर्वज तो इस दूत के आने के पूर्व ही राजपाट और भोग-विलास छोड़ कर धर्म साधना में लग गये थे और में अब तक भोग में ही आसक्त हूँ। में शीघ्र ही चारित्र ग्रहण करना चाहता हूँ । परंतु पुत्र अभी बालक है । यह राज्य भार संभालने योग्य नहीं हुआ, यही विचार बाधक बन रहा हैं । परन्तु में इस बाधा को हटा दूंगा। तुम पुत्र को संभालो । मैं
+ वहाँ तक कूणिक का पहुँच जाना सम्भव कैसे हुआ ?
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