Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सेचनक-जलमग वेहल्ल. वेह स दीक्षित हुए o reparation
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अमोघ वाण व्यर्य जाते देख कर उनकी सेना सहम गई। सेना समझ गई कि अपने स्वामी का पुण्य-बल क्षीण हो गया है। अब विजय की आशा नहीं रही।।
इस युद्ध में बिना ही अश्व का एक रथ, जिसमें न तो कोई सारथि था और न कोई योद्धा था, वह चारों ओर घन-घम कर प्रहार कर रहा था। रथ में से मसल के २२मान अस्त्र निकल कर शत्रु सेना पर प्रहार करते। एक साथ हजारों मूतलों का वज. मय भार पड़ती थी। जिस पर भी मूसल पड़ते, वह बच नहीं सकता था। इस सम्राम में भी चेटक-पक्ष पराजित हुआ । देव शक्ति के आगे मानव-दाक्ति भौतिक-बल में नहीं टिक सकती । अठारहों राजा भाग खड़े हुए। छियानवे लाख सैनिक इम रथमूमल संग्राम को भेंट चढ़ । इनमें से दस हज़ार तो एक ही मच्छो की कुक्षि में उत्पन्न हुए, एक देव और एक मनुष्य हुआ, शेष नरक-तियञ्च गति पाए ।
सेचनक जलमरा वेहल्ल वेहास दीक्षित हुए चेटक नरेश युद्ध भूमि से लौट कर वैशाली में आये और नगरी में प्रवेश कर द्वार बंद करवा दिये । कणिक ने वैशाली को घेरा डाल दिया ।
वेहल्ल और बेहास कुमार रात्रि के समय गुप्त रूप से सेचनक गजराज पर आरुढ़ हो कर कूणिक की सेना में घुसते और असावधान सैनिकों का वध करते। अपना काम कर के वे रात्रि के अन्धकार में ही चरचाप लौट जाते । इस प्रकार का विनाश देख कर कणिक चितित हआ। उसने अपने मन्त्रियों से उपाय पूछा। मन्त्रियों ने कहा-“यदि सेच हाथी का विनाश हो जाय, तो अपने आप यह उपद्रव रुक सकता है।"
उनके आने के मार्ग में खाई खोदी गई। उसमें खेर की लकड़ी के अंगारे भरे गये और ऊपर से उसे ढक दिया गया, जिससे किसी को अग्नि होने की आशंका नहीं रहे ।
वेहल्ल और वेहास अपनी सफलता से उत्साहित थे । वे पूर्व की भाँति शत्रु-संन्य का विनाश करने आये, परन्तु गजराज को आगे रही हई विपत्ति का ज्ञान हो गया। वह विभंगज्ञान वाला था। उसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया, परन्तु उसने पाँव नहीं उठाये। अन्त में स्वामी ने कहा;-- -
___ “सेचनक ! आज तू भी अड़ कर अपना पशुपना दिखा रहा है ? आज तू कायर क्यों हो गया ? क्या तेरी बुद्धि और साहस लुप्त हो गये हैं ?" तेरे लिये हमने घर-बार छोड़ा, विदेश आये। तेरे ही कारण पूज्य नाना चेटक नरेश और अन्य अठारह नरेश आदि युद्ध में कूदे, नर-सहार हुआ और सभी विपत्ति में पड़ गए। जिसमें स्वामीभवित नहीं रहे, ऐसे पशु का
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