Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
माने, परन्तु मैं तो आपको अपने पिता के समान ही मानता हूँ। मेरी दृष्टि में पूज्या शिवादेवी और चिल्लनादेवी समान हैं । मैं किसी का भी अहित नहीं देख सकता । मुझे लगता है कि आप सावधान नहीं हैं । में आपको बतलाता हूँ कि इन कुछ दिनों में हो आपके सहायकों को हजारों स्वण-मुद्राओं ( और भ ष्य में आपके राज्य का विभाग देने का वचन ) दे कर आपके विरुद्ध कर दिया गया है। वे आपके विश्वस्त सहायक आपको बंदी बना कर हमें देने को तत्पर हो गये हैं । आप चाहें, तो उन राजाओं के शिविर के निकट भूमि में छुपाई स्वर्ण मुद्राएँ निकलवा कर देख सकते है ।
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पत्र पढ़ते ही प्रद्यांत का मुख म्लान हो गया । उस पत्र ने अपने सहायकों के प्रति सन्देह उत्पन्न कर दिया। राजा उठा और पत्रवाहक तथा अंग-रक्षक के साथ एक राजा के शिविर के निकट आया । आसपास देखने पर एक स्थान पर कुछ घास और सूखे पत्ते कुछ काल पूर्व रखे हुए मिले। उन्हें हटाया गया, तो ताजी खोद कर पूरी हुई भूमि दिखाई दी । मिट्टी निकलने पर एक पात्र निकला जो स्वर्णमुद्राओं से भरा हुआ था । अब तो सन्देह पक्का हो गया । प्रद्योत ने अभयकुमार का आभार माना और दूत को पुरस्कृत कर के लौटाया । प्रद्योत भयभीत हो गया । उसने सेनापति को घेरा उठा कर तत्काल उज्जयिनी को ओर चलने का आदेश दिया और स्वयं कुछअंगरक्षकों के साथ भाग खड़ा हुआ । मगध की सेना ने पीछे से आक्रमण कर के उस भागती हुई सेना के बहुत-से हाथी-घोड़े धन और शस्त्रास्त्र लूट लिये ।
चण्डप्रद्योत के भागने पर अन्य राजा चकित रह गए। वे भी भयभीत होकर ऐसे भागने लगे कि ढंग से वस्त्र पहनने की भी सुध नहीं रही और उलटे-सीधे पहने । किसी का मुकुट रह गया, तो कई कुण्डल छोड़ कर भागे । मागधी-सेना उन पर झपट रही थी और उन्हें भागने के सिवाय कुछ सूझ ही नहीं रहा था । जब सभी राजा उज्जयिनी में एकत्रित हुए और शपथपूर्वक बोले कि हमने न तो शत्रु के किसी व्यक्ति से बात की और न घूस ही ली, तब सभी को विश्वास हो गया कि यह सब अभयकुमार का रचा हुआ मायाजाल है । हमें उस चालाक ने ठग लिया और लूट भी लिया । हमारी शक्ति भी क्षीण कर दी ।
वेश्या अभयकुमार को ले गई
राजगृह से घेरा उठा कर और लुट-पिट कर भाग आने की लज्जाजनक घटना से चण्डप्रद्योत अत्यंत क्षुब्ध था और अभयकुमार को पकड़ कर अपने पास मँगवाना चाहता
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