Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ proprithilpepapeprpnaकककककककककककककककककककककककककककककराव कनकाच-लकत-चन्तन-ल
खा-पी कर पड़े रहना । एक दिन का थकेला उतरे हो नहीं कि फिर वही कष्टदायक क्रम चलाना । इन सब झझटों से मुक्त हो कर सुख मय जीवन व्यत त करने का सुगम मार्ग मिल गया है इन्हें । झट झोलो ले कर निकले, इच्छानुसार पात्र भर लाये और सुखपूर्वक खा-पी कर आराम किया। किसी बात का झंझट नहीं, कोई दुःख नहीं । कल तक भार के पैसे के लिए घर के बाहर खड़ा रह कर जिनके आगे हाथ फैलाता था, वे अब इनके चरणों में प्रणाम करेंगे और इन्हें अपने खाने में से अच्छा भोजन देंगे । बस कपड़े बदलने की जरूरत थी।"
इस प्रकार की निन्दा और व्यंग वे सहन नहीं कर सके। उन्होंने श्री सुधर्मास्वामी से कहा--"अब इस नगर से विहार करना चाहिए। अभयकुमार उस समय सुधर्मास्वामी की वन्दना कर रहे थे। उन्होंने नवदीक्षित सन्त की बात सुनी, तो कारण पूछा । कारण जान कर लोगों के अज्ञान पर उन्हें खेद हुआ। लोगों का भ्रम मिटाने का निश्चय कर के श्री सुधर्मास्वामी से निवेदन किया-"भगवन् ! विहार की उतावल नहीं करें, अभी एकदो दिन रुकें ।"
राज्य-महालय में आ कर महामन्त्री अभय कुमार ने तीन कोटि के रत्न राज्यभण्डार से निकलवाये और चतुष्पथ के मध्य में रखवा कर पटह पिटवा कर उद्घोषणा करवाई;--
"भाइयों ! आओ, तुम्हें ये रत्नों के ढेर दिये जा रहे हैं। शीघ्र आओ।"
लोगों की भीड़ जमा हो गई। अभयकुमार ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा--
"हाँ, ये रत्नों के ढेर तुम्हें बिना मूल्य दिये जावेंगे। परन्तु इसके बदले में तुम्हें तीन वस्तु के त्याग की प्रतिज्ञा करनी होगी और उनका निष्ठापूर्वक पालन करना होगाजीवनपर्यंत, तीन करण तीन योग से । वे तीन वस्तु हैं--१ सचित्त पानी २ अग्नि और ३ स्त्री के स्पर्श का त्याग करना होगा । जो पुरुष इन तीनों का सर्वथा त्याग करेगा, उसे ही ये रत्न मिलेंगे।"
अभयकुमार की शर्त सुन कर लोग स्तब्ध रह गए । कुछ क्षणों तो सन्नाटा छाया रहा । फिर एक ने अपने निकट खड़े दूसरे से कहा; --
" जाओ, ले लो हीरों का ढेर । मुफ्त में मिल रहा है।" ----"तुम ले लो। मैं इतना साहस नहीं कर सकता।" "महामन्त्रीजी हमें साधु बनाना चाहते हैं। जब कच्चा पानी अग्नि और स्त्री को
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