Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
का चरित्र अंकित है । उसमें न तो मन्दिर मूर्ति के लिए एक अक्षर ही लिखा हैं और न प्रभावती देवी मरने के बाद देव होकर राजा को प्रतिबोध देने आने का ही उल्लेख है । भगवती सूत्र के आधार से यह कथा ही विश्वास के योग्य नहीं रहती, क्योंकि भगवती सूत्र में उदयन नरेश की दीक्षा का उल्लेख है । वहाँ प्रभावती देवी का रानी के रूप में ही उत्सव में उपस्थिति और लुंचित केश ग्रहण करने का उल्लेख है । अतएव कथा अविश्वसनीय ही है । हाँ, सुवर्णगुलिका दासी ऐतिहासिक है और उसके कारण युद्ध होने का उल्लेख प्रश्नव्याकरण सूत्र १-४ में है । वहाँ भी मात्र " सुवण्णगुलियाए" शब्द ही हैं और कुछ भी नहीं
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उज्जयिनी पर चढ़ाई और विजय
उदयन नरेश को ज्ञात हो गया कि प्रतिमा और सुवर्णगुलिका को चण्डप्रद्योत उड़ा ले गया है | अपनी गजशाला के समस्त हस्तियों का मद उतरने से वे समझ गए कि यहाँ उज्जयिनी का चण्डप्रद्योत, अनिलवेग गजराज पर चढ़ कर आया था। हाथी के मलमूत्र की गन्ध से समस्त हस्तियों का मद उतरा। इससे स्पष्ट है कि चण्डप्रद्योत आया और दासी को उड़ा कर ले गया । उदयन ने अपने अधीन रहे हुए राजाओं, सामन्तों और योद्धागणों के साथ विशाल सेना लेकर उज्जयिनी पर चढ़ाई कर दी । चण्डप्रद्योत भी अनिलवेग गजराज पर आरूढ़ हो कर रणक्षेत्र में आया। युद्ध प्रारम्भ हो गया । उदयन नरेश रथ पर बैठ कर युद्ध स्थल में आये । चण्डप्रद्योत जानता था कि उदयन के साथ रथारूढ़ हो कर युद्ध करने से मैं सफल नहीं हो सकूंगा । इसलिये वे हाथी पर चढ़ कर युद्ध करने आये । उदयन नरेश ने चण्डप्रद्योत के हाथी को अपने शीघ्रगामी रथ के घेरे में ले लिया । उनका रथ अनिलवेग के चक्कर लगाता रहा और हस्ती - रत्न के पाँव उठाते ही अपने धनुष से सूई जैसे तीक्ष्ण बाण मार कर गजराज के पाँव विश्व दिये । अनिलवेग पृथ्वी पर गिर पड़ा। उदयन तत्काल लपका और प्रद्योत को पकड़ कर बाँध दिया। अपने रथ में डाल कर शिविर में ले आया । युद्ध समाप्त हो गया। उदयन ने चण्डप्रद्योत के मस्तक पर -- तप्त लोहशलाका से “दासीपति अक्षर अंकित करवा दिये ।
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उज्जयिनी पर अपना अधिकार स्थापित कर और बन्दी चण्डप्रद्योत को साथ ले कर विजयी उदयन नरेश अपने राज्य में लौटने लगा । वर्षाऋतु प्रारम्भ हो गई थी । मार्ग पानी कीचड़ और नदी न ले आदि से अवरुद्ध हो गये थे । इसलिये योग्य स्थान पर नगर के समान पड़ाव लगा कर रुकना पड़ा । महाराजा को छावनी को मध्य में रख कर आनदस राजाओ के डेरे लग गये । दस बाजाओं से सेवित महाराजा उदयन का पड़ाव
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