Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 399
________________ ३८२ तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ सकते थे। परन्तु अभयकुमार की स्थिति इसके विपरीत थी। वह पिता के राज्य का सञ्चालन करता हुआ भी अलिप्त रहता था। वह व्रतधारी श्रावक था। प्रत्याख्यानावरण चौक का उदय भी उस पर तीव्रतर नहीं था और वह सर्वत्यागी श्रमण बनने का मनोरथ कर रहा था । परन्तु वह राज्य का स्तम्भ था, रक्षक था और कठिन परिस्थितियों में धैर्यपूर्वक सुगम माग निकाल कर गौरवपूर्वक सुरक्षित रखता था । राज्यभार से मुक्त हो कर प्रवजित होना उसके लिये सुगम नहीं था । वह उचित अवसर की प्रतिक्षा करने लगा। उदयन नरेश चरित्र सिन्धु-सौवीर देश की राजधानी वीतभय नगरी थी। महाराज 'उदयन' उसके स्वामी थे । वे महाप्रतापी थे। उनकी महारानी 'प्रभावती' बहुत सुन्दर और गुणवती थी । 'अभिचिकुमार' उनका पुत्र था। महाराजा उदयन सिन्धु सौवीर आदि सोलह जनपद और वीतभय आदि ३६३ नगरों एवं कई आकर के स्वामी थे। महासेन आदि १० मुकुटधारी राजा उनकी आज्ञा में थे, जिन्हें छत्र चामर आदि धारण करने की अनुमति महाराजा ने प्रदान की थी। अन्य छोटे राजा-सामन्त आदि बहुत थे। महाराज उदयन जीव-अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता श्रमणोपासक थे। उदयन नरेश के 'सुवर्णगुलिका' नाम की एक अत्यन्त सुन्दर दासी थी। उसके रूप की अन समता चण्डप्रद्योत के जानने में आई, तो चण्डप्रद्योत ने उसे प्राप्त करने के लिये एक विश्वस्त दुत वीतभय भेजा। चण्डप्रद्योत का अभिप्राय दुत द्वारा जान कर दासी ने सोचा--"दासी से महारानी बनने का सुयोग प्राप्त हो रहा है। परन्तु यों दूत के साथ चली जाना उचित नहीं होगा ।" उस चतुर दासी ने दूत से कहा--" में महाराज की आज्ञा पालन करने को तत्पर हूँ । परन्तु में तभी उज्जयिनी आ सकूँगी, जब स्वयं महाराज मुझे अपने साथ ले जायँ ।” दूत लौट गया। कामासक्त चण्डप्रद्यत अनिलवेग गजराज पर आरूढ़ होकर मध्यरात्रि के समय वीतभय आया और "सुवर्णगुलिका" को अपने साथ लेकर उज्जयिनी चला गया । टिप्पण-त्रिश• श० च. में इस स्थान पर लम्बीचोड़ी कहानी दी गई है। बताया गया है किचम्पा नगरी में एक कुमार नन्दी नामक x स्वर्णकार रहता था। वह धनाढ्य था और स्त्रीलम्पट भी। x आचार्य श्री मन्यगिरि रचित आवश्यक नि गा. ७७४ की कथा में भी यही न.म है, परन्तु निश ! भाष्य गा. ३१८२ और चणि में स्वगंकार का नाम अनंगसेन' लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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