Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भाग ३ FFFFFF
वाली ऊबड़खाबड़ महाअटवी में छुप जाता । राज्य की रक्षक सेना भी उसे इस अटवी में खोजते भयभीत होती थी । डाकूदल के निरीक्षक, पहाड़ी एवं ऊँचे वृक्ष पर चढ़ कर, बाहर से अटवी में प्रवेश करने वालों को देखते और अपने सरदार को संकेत करते, जिससे वह सावधान हो जाता । महात्मा श्री कपिलजी तो वीतराग थे । उनका भय मोहनीय कर्म नष्ट हो चुका था । इस डाकूदल का इन कपिल भगवान् से उद्धार होने वाला था। डाकूदल का उपादान परिपक्व हो चुका था । यह कपिल महात्मा जानते थे। यह उत्तमोत्तम निमित्त उपादान के निकट जा रहा था । उपादान भी निमित्त से मनोरंजन करने के लिए अपने स्थान से चल कर उस मार्ग पर आ पहुँचा। डाकू सरदार बलभद्र बोला--" ऐसे साधु गायन अच्छा करते हैं। आज इनका गायन सुन कर आनन्द लेना चाहिए। आज हमें कोई विशेष कार्य भी नहीं है । "
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महात्मा को डाकदल ' ने घेर लिया और गायन सुनाने / का आदेश दिया । महर्षि तो जानते ही थे । वहीं बैठ कर उन्होंने गायन प्रारंभ किया ।
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'अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्ख पउराए............
वैराग्य रस से भरपूर इन गाथाओं से कपिल भगवान् उस डाकूदल के उत्तम उपादान को झकझोर कर जगाने लगे । उत्तराध्ययन सूत्र के आठवें अध्ययन की बीस गाथाएँ इसी उपदेश से भरी हैं । सरदार सहित सभी डाकू संसार से विरक्त होकर भगवान् कपिलजी के शिष्य बन गए । उन्होंने गृहस्थवास का त्याग कर निर्ग्रथ दीक्षा अंगीकार कर ली ।
अभयकुमार की दीक्षा
भगवान् से उदयन नरेश का चरित्र / सुन कर अभयकुमार चिन्ता-मग्न हो गये । उन्हें विचार हुआ--' भगवान् का कहना है कि उदयन नरेश ही अंतिम राजर्षि हैं । इससे स्पष्ट हो गया कि अब कोई भी राजा दीक्षित नहीं होगा और पिताश्री मुझे राज्यभार देना चाहते हैं । नहीं, मैं राज्य नहीं लूंगा ।' वे श्रेणिक नरेश के समक्ष आये और
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* त्रि. श. चरित्रकार 'नाच करने का' उल्लेख करते हैं ।
x ग्रन्थकार ५०० ध्रुवपद गाने का उल्लेख करते हैं । लिखा है कि प्रत्येक ध्रुवपद पर एक-एक व्यक्ति प्रतिबोध पाया ।
7 कपिल केवली का चरित्र भी उदयन नरेश के चरित्र के अन्तर्गत आया है ।
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