Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वत्सराज उदयन बन्दी बना
भृगुकच्छ पर प्रद्योत का अधिकार था और राजा नये यन आदेशपत्र दे कर लोहजंघ दूत को बारबार भगकच्छ भेजता रहता था। लोहजंघ एकदिन में :५ योजन जा सकता था। इससे वहाँ के लोग तंग आ गये थे । वे चाहते थे कि यह ल हजघ मर जाय, तो हमें शांति मिले । यदि यह नहीं होगा, तो उज्जयिनी के आदेश इतनी शीघ्रता से नहीं आ सकेंगे। उन्होंने लोहजघ को मारने के लिए उसके खाने के लड्ड निकाल लिये और उनके स्थान पर विषमिश्रित लड्डू रख दिये, किन्तु उसका जीवन लम्बा था। लौटते समय वह एक नदी के तट पर भोजन करने बैठा । उस समय उसे अपशकुन हुए। वह बिना खाये उठा और आगे बढ़ा। कुछ दूर निकलने के बाद वह फिर एक जलाशय के निकट लड्डू निकाल कर खाने बैठा, तो फिर अपशकुन हुए। वह डरा और बिना खाये ही राजगृह पहुँचा । उसने राजा को आज्ञापालन का निवेदन करने के साथ अपशकुन वाली बात भी सुनाई । राजा ने अभय कुमार को बुला कर कारण पूछा। अभयकुमार ने लड्डू मँगवा कर देखे-संघे और कहा-“इसमें तथाप्रकार के द्रव्यों के संयोग से दृष्टिविष सर्प उत्पन्न हुआ है । यदि लोहजघ ने लड्डू तोड़े होते, तो उसी समय जल जाता । अब इसे वन में, मुंह पीछे कर के रख दिया जाय ।" इस प्रकार लड्डू रखने से उसमें उत्पन्न सर्प की दृष्टि से वहाँ के वृक्ष जल गए और वह सर्प मर गया ।
___ अभय कुमार की बुद्धि के परिणाम स्वरूप लोहजंघ बचा और वह विपत्ति टली। इस पर प्रसन्न हो कर राजा ने अभयकुमार से कहा; -
"अभय ! तुमने लोहजंघ को मृत्यु से बचाया । इससे मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम अपनी बन्धनमुक्ति के अतिरिक्त जो चाहो, सो माँग लो। मैं दूंगा।"
__-"आपका वचन अभी मेरी धरोहर के रूप में अपने पास रहने दीजिये । जब आवश्यकता होगी, माँग लूंगा"-अभयकुमार ने कहा ।
वत्सराज उदयन बन्दी बना
चण्डप्रद्योत राजा के अंगारवती रानी की कुक्षी से वासवदत्ता नाम की पुत्री हुई थी। वह परम सुन्दरी गुणवती और राज्य लक्ष्मी के समान सुशोभित थी। राजा उस पर पुत्र से भी अधिक स्नेह रखता था । राजकुमारी अन्य सभी कलाओं में प्रवीण हो चुकी थी, किन्तु गन्धर्व-विद्या सीखनी शेष रह गई थी। इसका निष्णात शिक्षक नहीं मिला था। राजा ने अपने अनुभवी मन्त्री से पूछा, तो उसने कहा;
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