Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चण्डप्रद्योत घेरा उठा कर भागा
चण्डप्रद्योत घेरा उठा कर भागा
श्रमण भगवान् महावीर प्रभु इस भारतभूमि पर विचर कर भव्यजीवों का उद्धार कर रहे थे । उस समय मगधदेश के शासक महाराजा श्रेणिक थे और अवंती प्रदेश का । यों दोनों साढू थे । श्रेणिक की महारानी चिल्लना और चण्डप्रद्यांत की शिवादेवी सगी बहने थी परन्तु राज्यविस्तार का लोभ और विजेता बनने की भावना ने शत्रुता उत्पन्न कर दी । शतानीक ने भी अपने साढू दधिवाहन के राज्य पर रात्रि के समय आक्रमण कर के अधिकार कर लिया था | चण्डप्रद्योत अपने सहयोगो अन्य चौदह राजाओं के साथ विशाल सेना ले कर मगध देश पर चढ़ आया । सीमारक्षक एवं भेदिये ने राज्यसभा में आ कर चण्डप्रद्योत के सेना सहित आने की सूचना दी। महाराजा श्रेणिक, प्रद्योत की महत्वाकांक्षा एवं शक्ति सामर्थ्य जानते थे । उन्हें चिन्ता हुई । उन्होंने महामन्त्री अभयकुमार की ओर देखा । अभयकुमार ने निवेदन किया--"यदि प्रद्योत मेरे साथ युद्ध करने आ रहा है, तो मैं उसका योग्य आतिथ्य करूँगा । चिन्ता की कोई बात नहीं है ।" अभयकुमार ने सोच लिया कि सेना के पड़ाव के योग्य भूमि कौन-सी है। उसने लोह-पात्रों में स्वर्ण मुद्राएँ भरवा कर उम स्थान में रातों-रात भिन्न-भिन्न स्थानों पर भूमि में गढ़वा दी । इसके बाद चण्ड-सेना ने प्रवेश किया । शत्रु सेना का कहीं भी अवरोध नहीं किया गया और सेना ने सरलता से राजपूर को घेर कर पडाव डाल दिया ।
अभयकुमार ने एक विचक्षण दूत को रात्रि के समय गुप्त रूप से सैन्यशिविर में भेजा । दूत लुकता-छुपता हुआ प्रद्यत के डेरे के निकट पहुँचा । प्रहरी ने उसे रोका । दूत ने कहा--" में तो निःशस्त्र हूँ । मुझ महाराजा से अति आवश्यक बात करती है । तुम महाराजा से निवेदन करो। मुझे इसी समय मिलना है ।"
सैनिक भीतर गया और राजा से दूत की बात निवेदन की । राजाज्ञा से दूत को
भीतर ले गया । दूत ने प्रद्योत का अभिवादन कर निवेदन किया-
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'महाराज ! मैं गुप्त द्वार से निकल कर बड़ी मन्त्रीजी ने यह पत्र श्रीचरणों में पहुँचाने का भार इस पहुँचा सका । "
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प्रद्योत ने पत्र लिया और खोल कर पढ़ने लगा; --
'महाराज ! सर्व प्रथम मेरा अभिवादन स्वीकार कीजिये । आप मुझे भले ही पराया
* पृ. २४४ पर देखें ।
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कठिनाई से आ पाया हूँ महा
सेवक पर डाला, जिसे मैं पार
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