Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र भाग ३
सब का त्याग किया। अब मैं दीक्षित होने जा रहा हूँ।"
पत्नियाँ सहम गई । उन्होंने गिड़गिड़ाते हुए कहा--"नाथ ! हंसी में कही हुई बात सत्य नहीं होती। आप हमें क्षमा कीजिये और गृह-त्याग की बात छोड़ दीजिये।"
धन्य ने कहा--"धन, स्त्री और कुटुम्ब-परिवार सब अनित्य है। यदि इनका त्याग नहीं किया जाय, तो ये स्वयं छोड़ देते हैं. या मर कर छोड़ना पड़ता है । मैं स्वयं संसार का त्याग करना चाहता हूँ'--कह कर धन्य खड़ा हो गया।
पति को जाता देख कर पत्नियें भी सयम लेने के लिये तत्पर हो गई। पुण्ययोग से भगवान महावीर वहाँ पधारे। धन्य ने दीनजनों को विपुल धन का दान दिया और पत्नियों सहित शिविका में बैठ कर भगवान के समीप गया। सभी ने भगवान् से दीक्षा ग्रहण की । जब ये समाचार शालिभद्र ने सुने, तो उसने सोचा--"बहनोई ने मुझे जीत लिया।" वह भी तत्काल दीक्षा लेने को तत्पर हो गया। महाराजा श्रेणिक ने शालिभद्र का दीक्षा महोत्सव किया। शालिभद्र भी भगवान का शिष्य बन गया । धन्य और शालिभद्र संयम और तप के साथ ज्ञान की आराधना करने लगे। वे बहुश्रुत हुए। वे मासखमण दो मास, तीन मास, चार मास आदि उग्रतप घारतप करने लगे। उनका शरीर रक्तमांस रहित हड्डियों का चर्माच्छादित ढाँचा मात्र रह गया।
माता ने पुत्र और जामाता को नहीं पहिचाना
कालान्तर में भगवान् के साथ दोनों मुनि अपनी जन्मभूमि--राजगृह पधारे । भगवान् की वन्दना करने के लिए जनता उत्साहपूर्वक आने लगी। धन्य और शालिभद्र मुनि मासखमण के पारणे के लिए भिक्षार्थ जाने की अनुज्ञा लेने के लिए भगवान् के समीप आये। नमस्कार किया। भगवान् ने शालिभद्र से कहा-“आज तुम तुम्हारी माता से मिले हुए आहार से पारणा करोगे।" दोनों मुनि नगर में भद्रा माता के द्वार पर पहुँचे । मुनियों का शरीर तपस्या से शुष्क हो गया था। वे पहिचाने नहीं जा सकते थे। उधर भगवान् तथा पुत्र-जामाता मुनियों को वन्दना करने जाने की शीघ्रता व्यग्रता से भद्रा सेठानी मुनियों की ओर ध्यान नहीं दे सकी। मुनि लौट आये। मार्ग में उन्हें शालिग्राम की वृद्धा धन्या मिली, जो शालिभद्रजी की पूर्व-भव की माता थी। वह दही-दूध बेचने के लिए नगर में आई थी। मुनियों को देखते ही उसके मन में स्नेह उमड़ा । उसने हाथ जोड़
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