Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सुलसा सती की परीक्षा
सुलसा सती की परीक्षा
अपने पूर्व के परिव्राजक के देश में रहने वाला प्रभु भक्त अम्बड़ श्रावक एकबार भगवान् को वन्दन करने चम्पानगरी आया । उपदेशं सुनने के बाद वह राजगृह जाने लगा, तो भगवान् ने अबड़ से कहा--" रा गृह के 'नाग' नामक रथिक की पत्नी 'सुलसा ' 'सम्यक्त्व' में दृढ़-अडिग सुश्राविका है * ।" प्रभु की वन्दना नमस्कार कर अम्बड अपनी वैक्रिय-शक्ति से उड़ा और आकाश मार्ग से तत्काल राजगृह पहुँच गया । उसने सोचा-
'सुलसा भगवान् की कितनी भक्त है कि जिस से भगवान् ने उसकी प्रशंसा की। मैं उसकी परीक्षा करूँ।" अपना रूप परिवर्तित कर के वह सुलसा के घर पहुँचा और भिक्षा मांगी। सुलसा के नियम था कि वह सुपात्र को ही दान देती । जो सुपात्र नहीं होता, उसे स्वयं नहीं दे कर दासी से दिलवाती । उसने दासी के द्वारा अम्बड को भिक्षा दी ।
अम्बड राजगृह के पूर्व की ओर के उद्यान में गया और ब्रह्मा का रूप धारण कर के पद्मासन लगा कर बैठ गया। वह चार हाथ, चार मुँह, ब्रह्मास्त्र, तीन अक्षसूत्र, जटा और मुकुट धारण किये हुए था और सावित्री को साथ लिये हुए तथा निकट ही अपना वाहन बिठाया हुआ दिखाई दे रहा था, साक्षात् ब्रह्मा के पद पंण का नगर में प्रचार हुआ । लोग दर्शन करने उमड़े । धर्मोपदेश होने लगा । सुलसा को उसकी
सखियों ने कहा-
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'साक्षात् ब्रह्मा का अवतरण हुआ है। चलो, अपन भी चलें और सुलसा निर्ग्रथनाथ भगवान महावीर प्रभु की सच्ची एवं पूर्ण उपासिका दूसरे दिन अम्ड ने विष्णु का रूप बनाया और नगरो के दक्षिण भाग में प्रकट हुआ । शव-चक्र गदादि धारण किये हुए, गरुड़ वाह्न युक्त के अवतरण के समाचार जान कर नगरजन उमड़े. परन्तु सुलसा अप्रभावित ही रही। तीसरे दिन शंकर का रूप बना कर पश्चिम दिशा में प्रकट हुआ। भार पर चन्द्रमा, रुण्डमाल, भुजा पर खट्वांग, तीन लोचन.
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आशातना मत करो ।" तब गौतमस्वामी ने मिथ्यादुष्कृत दिया और उन्हें खमाया । इस घटना से भा गणधर महाराज को खेद हुआ तब भगवान ने उन्हें अपने प्रति राग यावत् इसी भव में मुक्ति होने की बात कही।
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दर्शन करें ।" परन्तु
थी। वह नहीं गई
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इस कथानक पर से कई प्रश्न उपस्थित होते हैं। साक्षात जिनेश्वर भगवंत से भी प्रतिमा वन्दन का फल अत्यधिक हो सकता है क्या ?
* ग्रन्थकार ने लिखा है कि 'भगवान् ने सुलसा की कुशल छो' - - यह बात सत्य नहीं लगती ।
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