Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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क्या मैं छद्मस्थ ही रहूँगा xx गौतम स्वामी की चिन्ता
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महाराजा के किसी घड़ी के बच्चे के पांव से मेंढ़क कुचल गया । अब उससे आगे नहीं बढ़ा गया। वह सरक कर एक और हो गया और भगवान् की वन्दना करके अनशन ग्रहण कर लिया। शुभ ध्यान पूर्वक देह त्याग कर वह सौधर्म-स्वर्ग में दर्दुर देव हुआ। तत्काल उत्पन्न हुए देव ने भगवान् को अवधिज्ञान से देखा वह शीघ्र ही बन्दन करने समवसरण में उपस्थित हुआ और वन्दना-नमस्कार किया। अपनी चार पल्य पम की स्थिति पूर्ण करके दर्दुर देव, महाविदेह क्षत्र में जन्म लेकर मुक्त होगा।
क्या मैं छद्यस्थ ही रहूँगा + + गौतम स्वामी की चिन्ता
भगवान् पृष्ट-चम्पा नगरी पधारे । वहाँ 'साल' नाम के राजा और 'महासाल' नामक युवराज भगवान् को वन्दना करने आये और भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर विरक्त हो गए। उन्होंने राज्यभार अपने भानेज गागली कुमार को-- जो बहिन यशोमती का पुत्र था (पिता का नाम पिठर था) को दे कर भगवान् के पास प्रव्रज्या अंगीकार की। कालान्तर में भगवान् चम्पानगरी पधारे । भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर श्री गौतम स्वामीजी, साल और महासाल के साथ पृष्ट-चम्पा पधारे। गागलो नरेश, उनके माता-पिता, मन्त्रीगण
और जनता ने गणधर भगवान् की वन्दना का और धर्मोपदेश सुना । गागली नरेश, उनके माता और पिता ने गणधर भगवान के समीप दीक्षा ग्रहण की। वहां से गणधर महाराज ने पुनः भगवान के पास चम्पा जाने के लिये विहार किया। मार्ग में हलकर्मो महान आत्मा साल-महासाल और तीन सद्य-दीक्षितों के भावों में वृद्धि हुई और क्षपकश्रेणी चढ़ कर केवलज्ञानी हो गए। गणधर महाराज ने भगवान् को वन्दन-नमस्कार किया और यथास्थान बैठ गए, परन्तु पाँचों निग्रंथों ने भगवान् की प्रदक्षिणा की और केवलियों के समूह की ओर जाने लगे। यह देख कर गौतम स्वामीजी ने उन्हें कहा--"यह क्या ? पहले भगवान् को वन्दना करो।" इस पर भगवान् ने फरमाया--"गौतम ! तुम केवलज्ञानी वीतरागों की आशात ना कर रहे हो।" भगवान् के वचन सुन कर गौतमस्वामी ने मिथ्यादुष्कृत दिया और उन केवलियों से क्षमा याचना की। . इस घटना से श्री गौतम स्वामी चिन्तामग्न हो गए । सोचने लगे--"अभी के दीक्षित केवल ज्ञानी हो गए और मैं अबतक छद्मस्थ ही हूँ, तो, क्या मैं इस-भव में छद्मस्थ ही रहूँगा? मुझे केवलज्ञान नहीं होगा ? मुझे फिर जन्म-मरण करना पड़ेगा ?" गणधर महाराज को संबोधित करते हुए भगवान् ने कहा--
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