Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दशार्णभद्र चरित्र कपाकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
"देवी ! इस नगर में अभी ब्रह्मा आदि देव आये थे और नगरजन उनको वन्दन करने, धर्मोपदेश सुनने गये, परन्तु तुम नहीं गयी । इसका क्या कारण है ?''
‘महाशय ! आप जानते हैं कि वे देव राग द्वेष, काम-भोग और विषय-विकार युक्त हैं । जिसने वीतराग-धर्म को हृदयंगम कर लिया है, वह वहाँ क्यों जायगा? भगवान् जिनेश्वर देव महावीर प्रभु को प्राप्त कर लेने के बाद फिर कौनसी कमी रह जाती है कि जिससे दूसरों की चाहना की जाय ?"
अम्बड प्रसन्न हुआ और " साधु साधु" (धन्य-धन्य) कह कर चला गया।
दशार्णभद्र चरित्र
श्रमण भगवान महावीर प्रभु चम्पा नगरी से विहार कर विचरते हुए दशार्ण * देश में दसन्ना नदी के तट पर बसे दशाणपुरी नगरी पधारे । 'दशार्णभद्र' राजा वहाँ का स्वामी था। चर-पुरुष ने राजा के सम्मुख उपस्थित हो कर कहा--' भगवान महावीर प्रभु इस नगर की ओर ही पधार रहे हैं, कल यहाँ उद्यान में पधार जावेंगे ।" इन शुभ समाचारों ने नरेश के हृदय में अमृत-पान जैसा आनन्द भर दिया। उसने मन्त्रीमण्डल, सभासद एवं अधिकारियों को आज्ञा दी कि ' कल प्रातःकाल भगवान् को वन्दन करने जाना है। सभी प्रकार की सजाई उत्कृष्ट रूप से की जाय। हमारी सजाई और ठाठ इस प्रकार का अभूतपूर्व हो कि जैसा आज तक किसी ने नहीं किया। नगर के राज-मार्ग की सजाई भी सर्वोत्तम होनी चाहिये।'' राजा ने अन्त पुर में अपनी रानियों को भी आज्ञा दो और रात भी इपी चिन्तन में व्यतीत की।
भगवान् दशाण नगर के बाहर उद्यान में बिराजे । देवों ने समवसरण की रचना की। नगर का राजमार्ग सुगोभित हो रहा था। ध्वजा पताका, बन्दनवार, पुष्पाच्छादिन स्वर्णद्वार आदि से चिताकर्षक हो गया था। राजा मजधज के साथ गजारूढ़ हो कर भगवान की वन्दना करने चल निकला । दोनों ओर चवर डुलाये जा रहे थे। छत्र धारण किया हुआ था। नरेन्द्र, देवेन्द्र के समान लग रहा था । हजारों सामन्त भी वस्त्र भूषण से मुसज्जित हो कर नरेश के पीछे चल रहे थे। उनके पीछे देवांगना के समान सुशोभित गनियाँ रथारूढ़ हो कर चल रही थी। बन्दीजन स्तुति कर रहे थे । नागरिजन गजा
* कहा जाता है कि वर्तमान में मालव देशान्तर्गत 'मन्दसोर' नगर ही 'दशाणपूरी' थी।
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