Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र--भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक कककककककककककककक
माला और दो गोले देते हुए कहा कि--" इस हार को टूटने पर जो सांधेगा, वह जीवित नहीं रहेगा।"
राजा ने वह रत्नमाला महारानी चिल्लना को दी और दोनों गोले महारानी नन्दा को दिये । नन्दा रानी को रोष उत्पन्न हुआ कि “जो रत्नों का उत्तम हार था, वह तो अपनी प्रिया को दिया और मुझे ये गोले ! क्या करूँ में इनको ? '
उसने गोले एक खंभे पर दे मारे। गोले फट गये और एक में से रत्नजड़ित कुण्डल की जोड़ी और दूसरे में से उत्तम कोटि का रेशमी वस्त्रयुगल । वह अत्यंत प्रसन्न हुई ।
श्रेणिक निष्फल रहा + + तुम तीर्थंकर होगे
राजा ने कपिला ब्राह्मणी को बुला कर साधुओं को दान देने का कहा, तो कपिला बोली;--"आप मुझे स्वर्ण-रत्नों से भर दें, या शूली चढ़ा दें। मैं इन मुण्डियों को दान देने का महापाप कभी नहीं करूंगी।" कालसौरिक भी नहीं माना और तर्क करता हुआ बोला;--
___ "क्या दोष है--कसाई के धन्धे में ? मनुष्यों के खाने के लिए मारता हूँ और जीव-वध किस में नहीं होता ? धान्य-पानी में जीव नहीं है क्या ?"
राजा ने उसे कुतर्क करते हुए रोक कर कहा--"तू आजीविका के लिए यह क्रूर धन्धा करता है। मैं तुझे प्रचुर मात्रा में धन दूंगा। अब तो इस धन्धे को छोड़ दे।"
--"महाराज! मैं अपने बाप-दादों से चला आता हुआ धन्धा नहीं छोड़ सकता। आप चाहे जो करें"--कसाई अपने विचारों पर दृढ़ था ।
राजा ने उसे बन्दी बना कर अन्धकूप में डलवा दिया। दूसरे दिन श्रेणिक भगवान् को वन्दना करने गया। उसने भगवान से कहा--
“प्रभो ! मैने कालसौरिक से एक दिन-रात अहिंसा का पालन करवाया है। अब तो मेरे नरक जाने का कारण कट गया होगा ?"
--" राजन् ! कालसौरिक मन में अहिंसा उत्पन्न ही नहीं हुई । उसने तो अन्धकूप में भी मिट्टी के भैसे बना कर मारे और अपनी हिसक-वृत्ति का पोषण किया है।"
भगवान् के वचन सुन कर राजा हताश हुआ, तब भगवान ने कहा--'तुम हताश क्यों होते हो। नरक से निकल कर तुम आगामी उत्सपिणी काल में प्रथम तीर्थंकर बनोगे।"
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