Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र - भा. ३
उसकी जटाएँ खुली थी और स्कन्ध आदि पर फैली हुई थी । वह स्वभाव से ही विनीत, दयालु एवं दाक्षिण्यता से युक्त था। वह समतावान्, धर्मप्रिय और ध्यान साधना में तत्पर रहता था । बेले-बेले की तपस्या वह निरन्तर करता रहता था और सूर्य की आतापनापूर्वक ध्यान भी करता रहता था उसके मस्तक की जटा में रही हुई यूकाएँ ( जँग ) असह्य ताप से घबड़ा कर खिर कर भूमि पर गिरती । वे तप्तभूमि पर मर नहीं जाय, इसलिए वह भूमि से उठा कर पुनः अपने मस्तक पर धर देता ।
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शिकायन के कोप से गोशालक की रक्षा
ऐसे ही समय भगवान् गोशालक सहित कूर्म ग्राम पधारे । वेशिकायन को यूकाएँ उठा कर मस्तक पर रखते हुए देख कर गोशालक ने कहा--' -"तुम तत्त्वज्ञ मुनि हो या जूँओं के घर ?” वैशिकायन ने गोशालक के प्रश्न की उपेक्षा की और शान्त रहा । परन्तु गोशालक चुप नहीं रह सका और बार-बार वही प्रश्न करता रहा। बार-बार की छेड़छाड़ से शान्त तपस्वी भी क्रोधित हो गया । उसने तपस्या से प्राप्त तेजोलेश्या शक्ति से दुष्ट गोशालक को भस्म करने का निश्चय किया । वह आतापना भूमि से पीछे हटा और तेजस्समुद्घात कर के गोशालक पर उष्ण तेजोलेश्या छोड़ी। गोशालक की दुष्टता, तपस्वी का क्रोध और तपस्वी द्वारा गोशालक को भस्म करने के लिये उष्ण तेजोलेश्या छोड़ने की प्रवृत्ति से भगवान् अवगत थे । भगवान् को गोशालक पर दया आई । उसकी रक्षा के लिए भगवान् ने उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिरोध करने के लिए शीतल तेजोलेश्या' निकाली । भगवान् की शीतल तेजोलेश्या से वेशिकायन की उष्ण तेजोलेश्या प्रतिहत हुई । जब वे शिकायन ने अपनी उष्ण तेजोलेश्या का भगवान् की शीतल-तेजोलेश्या से प्रतिहत होना और गोशालक को पूर्ण रूप से सुरक्षित जाना, तो उसे भगवान् की विशिष्ट शक्ति का
* इस विषय में पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ने 'जैनधर्म का मौलिक इतिहास' भाग १ पृ. ३८६ पर लिखा है कि- " अब क्या था गोशालक मारे भय के भागा और प्रभु के चरणों में आ कर छुप गया । दयालु प्रभु ने. .....। इससे मिलतीजुलती बात त्रि. श. पु. च में भी है । किन्तु भगवती सूत्र श. १५ के वर्णन से यह बात उचित नहीं लगती । सूत्र के शब्दों से लगता है कि गोशालक को भय तो क्या, यह ज्ञात ही नहीं हुआ कि उस पर तेजोलेश्या छोड़ी गई और भगवान् ने शीतल लेश्या छोड़ कर उसकी रक्षा की । उसने वैशिकायन के इन शब्दों 'सेगयमेयं भंते २' को सुन कर भगवान् से पूछा, तब मालूम हुआ । उसके बाद वह डरा और भगवान् से तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि पूछो ।
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