Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३१२
तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
से विचलित हो कर वह उसे पकड़ने के लिए उठा, तो खंभा हाथ में आया । पत्नी धन्या.. के कहने पर वह आश्वस्त हुआ और प्रायश्चित्त किया। यह भी पूर्ववत् सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और महाविदेह में मनुष्य होकर मुक्ति प्राप्त करेगा ।
चुल्लशतक श्रावक
आलभी में 'चुल्लशतक' गृहपति था । उसकी भार्या का नाम बहुला था। उसके पास भी छह छह कोटि द्रव्य पूर्ववत् था। भ० महावीर से प्रतिबोध पा कर वह भी धर्मसाधक बना और प्रतिमा का पालन करने लगा । उसे भी देवोपसर्ग, पुत्रों के घात तक वैसा ही हुआ। अंत में धन हरण कर कंगाल बना देने की धमकी पर विचलित हुआ । यह भी सौधर्मकल्प में चार पल्योपम स्थिति वाला देव हुआ और महाविदेह में मनुष्य-भव पा कर सिद्ध होगा ।
श्रमणोपासक कुण्डकोलिक का देव से विवाद
कम्पिलपुर में 'कुण्ड कोलिक' श्रमणोपासक रहता था । उसकी सम्पत्ति अठारह करोड़ सोनैये की पूर्ववत् तीन भागों में लगी हुई थी। साठ हजार गायों के छह वर्ग थे । भगवान् महावीर प्रभु का उपदेश सुन कर कुण्डकोलिक ने भी श्रावक व्रत धारण किये । उसके 'पूषा' नाम की भार्या थी । कालान्तर में कुण्डको लिक अशोकवाटिका में आया और अपनी नामाकित मुद्रिका तथा उत्तरीयवस्त्र पाषाण पट्ट पर रख कर भगवान् महावार प्रभु से प्राप्तमवज्ञप्ति ( सामायिक स्वाध्यायादि) स्वीकार कर तन्मय हुआ । उस समय उसके समक्ष एक देव प्रकट हुआ और शिला पर रखी हुई मुद्रिका और उत्तरीय वस्त्र उठा लिये और पृथ्वी से ऊपर अंतरिक्ष में खड़ा हो कर कुण्डको लिक से कहने लगा; --
" हे कुण्डको लिक ! मंखलीपुत्र गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति ही सुन्दर है, अच्छी है, जिस में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषकार पराक्रम की आवश्यकता नहीं मानी गई है । यहाँ सभी भाव नियत ( भवितव्यता पर निर्भर ) है । किन्तु श्रमण भगवान् महावीर की धर्मत्रप्ति अच्छी नहीं है । क्योंकि उसमें उत्थान यावत् पुरुषार्थ माना गया है और सभी भावों को अनियत माना गया है ?"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org