Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सुरादेव श्रमणोपासक
ककककककककककककक कककक कककककककक ककककक कककककककककककककककक
देव उसके मझले पुत्र का लाया, यावत् तीसरी बार कनिष्ट पुत्र को मार कर छाँटा । इतना होते हुए भी श्रावक चलायमान नहीं हुआ, तो अन्त में देव उसकी माता भद्रादेवी को उठा लाया और बोला-
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" देख चुलनीपिता ! यदि अब भी तू अपनी हठ नहीं छोड़ेगा, तो तेरे देव गुरु के समान पूजनीयतेरी माता को मार कर यावत् सिंचन करूँगा ।" फिर भी वह दृढ़ रहा, किन्तु दूसरी-तीसरी बार कहने पर उसे विचार हुआ कि - " यह कोई अनार्य, क्रूर एवं अध है इसने मेरे तीन पुत्रों को मार डाला और अब देव गुरु के समान मेरो पूज्या जननी को मारने पर तुला है । अब मेरा हित इसी में है कि मैं इसे पकड़ कर क्रूरकर्म करते हुए रोकूं।" इस प्रकार सोच कर वह उठा और देव को पकड़ने के लिए चिल्लाता हुआ-'ठहर ओ पापी ! तू मेरी देव गुरु के समान पूज्या जननी को कैसे मार सकता है" -- झपटा, तो उसके हाथ में एक खंभा आ गया । देव लुप्त हो चुका था । पुत्र का चिल्लाना सुन कर माता जाग्रत हुई और पुत्र से चिल्लाने का कारण पूछा। जब पुत्र ने किसी अनार्य द्वारा तीनों पुत्रों की घात और अंत में उसकी ( माता की ) घात करने को तत्पर होने और माता को बचाने के लिए उसे पकड़ने के लिए उठने की बात कही, तो माता समझ गई और बोली--' 'पुत्र ! किसी मिथ्यात्वी देव से तुम्हें उपसर्ग हुआ है, या तेने वैसा दृश्य देखा है । तेरे तीनों पुत्र जीवित हैं । तुम आश्वस्त होओ और अपने नियम एवं पौषध के भंग होने की आलोचना कर के प्रायश्चित्त ले कर शुद्ध हो जाओ ।"
"
चुलनी पिता ने आलोचना की और प्रायश्चित्त कर के शुद्ध हुआ । इसने भी प्रतिमाओं का पालन कर के अनशन किया। एक मास का संथारा कर सौधर्म स्वर्ग में, चार पल्योपम आयुवाला देव हुआ, यावत् महाविदेह में मुक्ति प्राप्त करेगा ।
सुरादेव श्रमणोपासक
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वाराणसी का ' सुरादेव' श्रावक भी संपत्तिशाली था । इसके छह-छह कोटि द्रव्य निधान, व्यापार और गृहविस्तार में लगा था। छह गोवर्ग थे । धन्या भार्या थी । यह भी भगवान् का उपासक था । चुलनी पिता के समान उसके समक्ष भी देव उपस्थित हुआ। तीनों पुत्रों को मार कर उनके रक्त मांस को पका कर उसके देह का सिंचन किया था। अंत में उसके स्वयं के शरीर में एक साथ सोलह महारोग उत्पन्न करने का भय बताया। इस भय
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