Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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लज्जित हुआ । उसके मुख पर उदासी छा गई और वह पीछा लौटने लगा । गोशालक के स्थविरों ने देखा कि अयंपुल शंकाशील हो कर लौट रहा है, तब उन्होंने उसे बुलाया और कहा-
प्रतिष्ठा की लालसा
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' अयंपुल ! धर्माचार्य गोशालक भगवान् आठ चरम, चार पानक और चार अपानक का उपदेश करते हैं । यह इनका निर्वाण होने के पूर्व का उपदेश है और गायन, नृत्य आदि अभी निर्वाण के चिन्ह हैं । तू उनके पास जा । वे तेरी शंका का समाधान कर देंगे ।"
अयं पुल गोशालक के पास जाने लगा । स्थविर का संकेत पा कर गोशालक ने आम्रफल को एक ओर डाल दिया । अयंपुल ने निकट आ कर गोशालक को वन्दननमस्कार किया । गोशालक ने अयंपुल से पूछा --
" अयंपुल ! तुझे रात्रि के पिछले पहर में संकल्प उत्पन्न हुआ था कि -- 'हल्ला' किस आकार की होती है ?
卒業
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"हां भगवन् ! सत्य हैं " -- अयंपुल ने कहा ।
'अयंपुल ! मेरे हाथ में आम्रफल की गुठली नहीं थी, आम्रफल की छाल थी । शंका मत कर।
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'अयंपुल ! तेरी शंका का उत्तर यह है--हल्ला बांस के मूल के आकार की होती है ।"
इतना कहने के पश्चात् उन्माद का प्रकोप बढ़ा, तो वह बकने लगा--" हे वीरा ! वीणा बजाओ । हे वीरा ! वीणा बजाओ ।"
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प्रतिष्ठा की लालसा
गोशालक समझ गया कि मेरा मरणकाल निकट आ रहा है। उसने स्थविरों को बुला कर कहा-
" जब में मृत्यु प्राप्त कर लूँ, तब मुझे सुगंधित जल से स्नान करवाना, सुवासित वस्त्र से शरीर पोंछना, गोशीर्षचन्दन का लेप करना, श्वेत वर्ण का उत्तम वस्त्र पहिनाना और सभी अलंकारों से विभूषित करना । तत्पश्चात् सहस्र पुरुष मेरी शिविका को उठा कर नगरी के मुख्य बाजारों आदि में घुमाते हुए उद्घोषणा करना कि -- ' मंखलीपुत्र
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