Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३३८
तीर्थंकर चरित्र -- भा. ३
"
भगवान इन्द्रभूतिजी गौतम ने आगे कहा-- यह कष्ट और हिंसा तुझे इस भव में ही नहीं, पर भव में भी चिरकाल तक दुःखी करती रहेगी । स्वयं देख ले | तेरे हल की मार से ये कीड़ी - कुंथु आदि कितने जीव मर रहे हैं। इतना कष्ट और ऐसा पाप करने से तुझे जो मिलेगा, वह किस गिनती में होगा ? और जीवनभर ऐसा पाप करते रहने पर तेरी गति क्या होगी ? इस पर विचार कर यदि तू इस कष्ट कर उद्यम के बदले धर्म-साधना में थोड़ा भी उद्यम करे, तो तेरा मानव-जीवन सफल हो जायगा और तू भविष्य में भी सुखी बन सकेगा ।"
।
गणधर भगवान् गौतम स्वामी के उपदेश से हालिक प्रभावित हुआ । उसका हृदय वैराग्य से भर गया और वह श्री गौतम स्वामीजी से निग्रंथ प्रव्रज्या ग्रहण कर के साधु बन गया । दीक्षित हो कर चलते हुए हालिक ने श्री गौतम गुरु से पूछा
46
'भगवान् ! हम अब कहाँ जा रहे हैं ?
-" मेरे गुरु के समीप चल रहे हैं ?"
'अरे, आप स्वयं अद्वितीय महा पुरुष हैं। आपसे बढ़ कर भी कोई गुरु हो सकता है क्या " -- हालिक मुनि ने आश्चर्य से पूछा ।
""
'भद्र ! मेरे ही क्या, समस्त विश्व के गुरु, परम वीतराग सर्वज्ञ - सर्वदर्शी तीर्थंकर भगवान् महावीर प्रभु त्रिलोक पूज्य हैं । देवेन्द्र भी उनके चरणों में झुकता हैं । हम उन्हीं परमात्मा के पास जा रहे हैं" --श्री गौतम स्वामी ने कहा ।
हालिक मुनि ने भावना की प्रशंसा अपने गुरु के मुख से सुनी, तो उनके मन में भगवान् के प्रति भक्ति उमड़ी। वे प्रमोद भावना में रमते हुए भगवान् के समीप पहुँचे । भगवान् पर दृष्टि पड़ते ही हालिक मुनि ने गौतम गुरु से पूछा--" ये कौन बैठे हैं ?” 'ये ही मेरे धर्माचार्य धर्मगुरु जिनेश्वर भगवंत हैं । चलो, भगवान् की वन्दना करें ।"
हालिक भगवान् को देखते ही सहम गया । उसे भगवान् भयानक लगे । वह बोला--" यदि ये ही आपके गुरु हैं, तो मुझे आपके साथ भी नहीं रहना है । में जा रहा हूँ -- अपने घर " -- कहता हुआ हालिक साधु-वेश वहीं छोड़ कर चला गया ।
गौतम गुरु को आश्चर्य हुआ । उन्होंने भगवान् से पूछा --
" प्रभो ! हालिक को मुझ पर प्रेम था । उसने मेरे उपदेश से प्रभावित होकर प्रव्रज्या ली और प्रमोद भावना से चलता हुआ यहां तक आया । परंतु आपको देखते ही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org