Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
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रहे । सुनक्षत्र अनगार और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी भी समर्थ थे, परन्तु उन्होंने तेरा अपराध सहन किया था और तुझे क्षमा कर दिया था। परन्तु मैं तुझे क्षमा नहीं करूँगा और तुझे तेरे घोड़े सहित नष्ट कर दूंगा ।"
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सुमंगल अनगार के उपरोक्त कथन पर विमलवाहन राजा अत्यंत क्रोधित होगा और तीसरी बार टक्कर मार कर उन्हें गिरा देगा । सुमंगल अनगार भी क्रोधित हो जावेंगे और आतापना स्थान से हट कर, तेजस्- समुद्धात कर एक ही प्रहार से विमलवाहन को रथ घोड़े और सारथि सहित जला कर भस्म कर देंगे 1
भस्म मुनिवरों की गति
गोशालक के तेजोलेश्या के प्रयोग से सर्वानुभूति अनगार मृत्यु पा कर 'सहस्रार कल्प' नामक आठवें देवलोक में उत्पन्न हुए और सुनक्षत्र अनगार 'अच्युत-कल्प' नामक बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुए । सर्वानुभूति देव की आयु अठारह सागरोपम प्रमाण और सुनक्षत्रदेव की बाईस सागरोपम प्रमाण है । देवायु पूर्ण कर के वे महाविदेह में मनुष्य होंगे और संयम का पालन कर मुक्त हो जावेंगे ।
( सर्वानुभूति अनगार पर तेजोलेश्या का प्रथम प्रहार होते ही वे मृत्यु पा गए । उन्हें संभल कर अंतिम साधना करने की अनुकूलता नहीं मिला। इससे वे आठवें स्वर्ग को प्राप्त हुए। परन्तु सुनक्षत्र अनगार पर तेजोलेश्या का प्रहार उतना शक्तिशाली नहीं रहा था । इसलिए वे संभल गये, अंतिम साधना कर सके और बारहवें देवलोक पहुँचे । )
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भगवान् का रोग और लोकापवाद
गोशालक की तेजोलेश्या से भगवान् महावीर स्वामी के शरीर में पित्तज्वर उत्पन्न हुआ और रक्त-गद युक्त अतिसार (दस्त ) होने लगा । दुर्बलता आई । परन्तु भगवान् ने इसका उपचार नही किया । भगवान् का रोग एवं दुर्बलता लोगों की चिन्ता बन गई । भगवान् श्रावस्ति से विहार कर क्रमशः मेढिक ग्राम पधारे। लोग परस्पर वार्तालाप में कहते --" गोशालक ने कहा था कि- " मेरी तेजोलेश्या से तुम छह मास में काल कर के -- छद्मस्थ अवस्था में ही - मृत्यु प्राप्त करोगे ।" गोशालक का यह वचन सत्य तो नहीं
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