Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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गोशालक का आगमन और मिथ्या प्रलाप
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रक्षण करूँगा । जा, तू तेरे धर्माचार्य से मेरी बात कह दे ।"
श्रमणों को मौन रहने का भगवान का आदेश
गोशालक की बात सुन कर आनन्द स्थविर डरे । वे भगवान् के समीप आये और गोशालक की बात सुन कर पूछा --"भगवान् ! गोशालक में यह शक्ति है कि वह किसी को जला कर, भस्म कर दे ?"
"हां, आनन्द ! गोशालक में ऐसी शक्ति है । किन्तु अरिहंत को भस्म करने की शक्ति उस में नहीं है । हां, वह उन्हें परितापित कर सकता है।"
गोशालक में जितना तप-तेज है, उससे अनगार भगवंतों में अनन्त गुण तप-तेज है। क्योंकि अनगार भगवंत क्षमा करने में सक्षम हैं और स्थविर भगवंतों से अरिहंत भगवंतों का तप-तेज अनन्त गुण अधिक है । ये भी क्षांतिक्षम हैं।"
"आनन्द ! तुम जाओ और गौतमादि श्रमण-निग्रंथों से कहो कि गोशालक श्रमणनिग्रंथों के प्रति क्रूर बन गया है। इसलिये उसके साथ उसके मत सम्बन्धी बात नहीं करें।"
स्थविर महात्मा आनन्दजी ने भगवान् का आदेश सभी श्रमणों को सुना दिया।
गोशालक का आगमन और मिथ्या प्रलाप
महात्मा आनन्दजी श्रमणों को सावधान कर ही रहे थे कि इतने में क्रोध में धमधमाता हुआ गोशालक आया और भगवान् के निकट खड़ा रहा कर बोला ;--
"हे आयुष्यमन् काश्यप ! तुम मेरे विषय में प्रचार करते हो कि 'मंखली का पुत्र गोशालक मेरा शिष्य है,'--यह बात मिथ्या है। जो मंखली का पुत्र गोशालक तुम्हारा शिष्य था, वह तो स्वच्छ-एवं पवित्र हो कर देवलोक में देव हुआ है । मैं कौडिन्यायन गौत्रीय उदायी हूँ। मैने गोतमपुत्र अर्जुन का शरीर त्याग कर के गोशालक के शरीर में प्रवेश किया है । यह मेरा सातवाँ शरीर-प्रवेश है । अतएव तुम्हारा कथन अनुचित है।"
गोशालक को भगवान् महावीर प्रभु ने कहा,--
“गोशालक ! जिस प्रकार रक्षकों से पराभूत हुआ कोई चोर, छुपने के लिए भाग कर खड्डा, गुफा आदि स्थान प्राप्त नहीं होने पर बाल अथवा तिनके की ओट से अपने
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