Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र--भाग. ३ itriarrioritripopriatrapostnepa
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को सुरक्षित समझता है । प्रकट होते हुए भी छुपा हुआ मानता है, इसी प्रकार तू अपनी वास्तविकता छुपाना चाहता है। परंतु तेरा यह प्रयत्न व्यर्थ है । तू वही गोशालक है, जो मेरा शिष्य था, अन्य नहीं।'
भगवान् के वचन गोशालक को सहन नहीं हुए । वह अत्यंत क्रुद्ध हो कर गालियाँ देने लगा और अंत में कहा--"आज तू नष्ट-भ्रष्ट होगा। अब तू जीवित नहीं रह सकता।"
श्रमणों की घात और भगवान् को पीड़ा सर्वानुभूति अनगार गोशालक के क्रूरतापूर्ण वचन सहन नहीं कर सके भगवान का अपमान उन्हें असह्य हुआ । वे उठे और गोशालक के निकट आ कर बोले ;--
"हे गोशालक ! जा मनुष्य भगवान् से एक भी आर्य वचन सुनता है, वह उनका आदर-सत्कार करता है, वन्दना-नमस्कार करता है और पर्यपासना करता है, तो तेरे लिये तो कहना ही क्या ? भगवान् ने तुझे दो क्षित किया, धर्म की शिक्षा दी और तुझे तेजोलेश्या सिखाई, जिसका उपकार मानना तो दूर रहा, तू उन्हीं की भर्त्सना करता है ? तुझे ऐसा नहीं करना चाहिये । तू वही मंख लीपुत्र गोशालक है। तू अपने को छुपा नहीं सकता।"
सर्वानुभूति मुनि के वचन सुन कर गोशालक विशेष भड़का। वह अपने आपको छुरा रहा था, परन्तु सर्वानुभतिजी ने भी उसे 'गोशालक' ही कहा, तो उस के हृदय में अग लग गई । उसने तेजोले.या का प्रयोग कर के मुनि महात्मा को भस्म कर दिया और फिर भगवान् महावीर स्वामो को गालियाँ देने लगा।
___ग गालक की क्रूरता सुनक्षत्र अनगार भी सहन नहीं कर सके। उन्होंने भी खड़े होकर सर्वानुभूति अनगार के समान गोशालक से कहा, तो गोशालक ने उन पर भी तेजोलेश्या का प्रहार किया। इस बार उसकी शक्ति न्यून हो गई थी। वह उन्हें तत्काल भस्म नहीं कर सका । महात्मा संभले ! उन्होंने भगवान् को वन्दन किया, सभी साधु-साध्वी से क्षमा याचना को और आलोचनादि कर के कायुत्सर्ग युक्त ध्यान करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए
भगवान् पर किया हुआ आक्रमण खुद को भारी पड़ा
सर्वानुभूति और सुनक्षत्र मनि के देहोत्सग के पश्चात् भगवान् ने ही उसे कहा-- "गोशालक ! तू अनार्य एवं कृतघ्न मत बन और अपने आप को मत छुपा ! तू वहो-- मखलं पुत्र है।"
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