Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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गोशालक ने आनन्द स्थविर द्वारा भगवान् को धमकी दो
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सवाँ वर्ष था । श्रावस्ति में वह जिन तीर्थंकर सर्वज्ञ - सर्वदर्शी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था ।
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भगवान् महावीर प्रभु श्रावस्ति पधारे और कोष्टक उद्यान में बिराजे । गणधर महाराज गौतमस्वामीजी बेले के पारणे के लिए आहार लेने नगर में पधारे। उन्होंने लोगों के मुँह से गोशालक के तीर्थंकर केवली होने की बात सुनी। उन्हें लोगों की बात पर विश्वास नहीं हुआ । स्थान पर आने के बाद गौतम स्वामीजी ने भगवान् से गोशालक का वास्तविक परिचय पूछा। भगवान् ने फरमाया;
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'गौतम ! गोशालक का कथन मिथ्या है । वह मंखली जाति के मंख पिता और भद्रा माता का पुत्र है। मेरे छद्मस्थकाल के दूसरे चातुर्मास में मासखमण के पारणे पर दिव्यवर्षा से आकर्षित हो कर उसने मेरा शिष्यत्व स्वीकार किया था ।" भगवान् ने गोशालक का तेजोलेश्या प्राप्त करने और अपना आजीविक मत चलाने आदि का वर्णन किया । भगवान् का किया हुआ वर्णन उपस्थित लोगों ने सुना । उन्होंने नगरी में आ कर प्रचार किया कि " गोशालक जिन नहीं, सर्वज्ञ नहीं । वह मंखलीपुत्र है । मिथ्यावादी है । तीर्थंकर सर्वज्ञ-सर्वदर्शी तो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ही है । " श्रावस्ति में प्रसार पाई हुई यह चर्चा गोशालक ने भी सुनी। वह क्रोधाभिभूत हो गया । कुम्भकारापण में आ कर वह क्रोध में तमतमाया हुआ बड़बड़ाने लगा ।
गोशालक ने आनन्द स्थविर द्वारा भगवान को धमकी दी
उस समय भगवान् महावीर प्रभु के शिष्य 'आनन्द' स्थविर अपने बेले के पारणे के लिये आहार- पानी प्राप्त करने श्रावस्ति नगरी में फिर रहे थे । वे हालाहला कुम्भारिन के उस व्यवसाय स्थल के निकट हो कर निकले - - जहाँ गोशालक रहता था ।
x गोशालक की दीक्षापर्याय २४ वर्ष, भगवान् महावीर प्रभु की दीक्षा का २६ वाँ वर्ष हो सकता है | भगवान् महावीर की दीक्षा के १ वर्ष ८ महीने २० दिन बाद गोशालक ने भगवान् का शिष्यत्व स्वीकार किया था । भगवान् की दीक्षा मार्गशीर्ष कृष्णा १० थी, और गोशालक ने दूसरे चातुर्मास की भाद्रपद कृ. १ को शिष्यत्व स्वीकार किया था । अतएव उस समय भगवान् की दीक्षा - पर्याय का २६ वाँ वर्ष था । इसमें से छद्मस्थ- पर्याय के साढ़े बारह वर्ष कम करने पर केवल पर्याय का १४ वाँ वर्ष हो सकता है, १५ वाँ नहीं ।
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