Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
साधुओं के सम्मुख श्रावक का आदर्श
भगवान् ने साधु-साध्वियों को सम्बोध कर कहा;
"आर्यों ! इस कामदेव श्रमणोपासक ने गृहवास में रहते हुए, एक मायो मिथ्यादृष्टि देव के पिशाच, हाथी और सर्प रूप के अति घोर उपसर्ग को सहन कर के अपनी धर्मदृढ़ता का पूर्ण निर्वाह किया है, तब तुम तो अनगार हो, निग्रंथ-प्रवचन के ज्ञाता हो और संसार-त्यागी निग्रंथ हो। तुम्हें तो देव-मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी सभी उपसर्ग पूर्ण शान्ति के साथ सहन करते हुए अपने चारित्र में वज्र के समान दृढ़ एवं अटूट रहना चाहिए।"
भगवान् का वचन निग्रंथों ने शिरोधार्य किया । श्राद्ध-श्रेष्ठ कामदेव जी ने भगवान् से प्रश्न पूछे, अपनी जिज्ञासा पूर्ण की और भगवान को वन्दना कर के लौट आए । कामदेवजी ने उपासक प्रतिमा का पालन किया और एक मास का संलेखना-संथारा किया, तथा बोस वर्ष श्रावक-पर्याय पाल कर सौधर्म देवलोक में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव हुए। ये भी मनुष्य-भत्र पाएंगे और चारित्र की आराधना कर के मुक्ति प्राप्त करेंगे।
चुलनीपिता श्रावक को देवोपसर्ग
वाराणसी नगरी के 'चुलनी पिता श्रमणोपासक ने भी भगवान् की देशना सुनी और उपासक हुआ। उसकी भार्या 'श्यामादेवी' उपासिका वनी । यह आनन्द कामदेव से भी अधिक समात्तिवान था। इसके आठ-आठ करोड़ स्वर्ण कोषागार, व्यापार और घर पसारे में लगा था । आठ गा-वर्ग थे। इसने भी प्रतिमा धारण की। मध्य रात्रि में इसके सम्मुख भी एक देव उपस्थित हुआ और उसके धर्म नहीं छोड़ने पर कहा कि “तेरे ज्येष्ठ-पुत्र को घर से ला कर तेरे समक्ष मारूँगा । उसके टुकड़े कर के कड़ाह में उसका मांस तलूंगा और उस तप्त मांस-रक्त से तेरे शरीर का सिंचन करूँगा, जिससे तू महान् दुःख भोगेगा और रोता-कलापता एवं आर्तध्यान करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होगा।"
देव के भयावने रूप और क्रूर वचनों से चुलनीपिता नहीं डरा, तो देव उसके पुत्र को सम्मुख लाया । उसे मारा, उसके टुकड़े कर के रक्त-मांस कड़ाव में उबाले और श्रावक के शरीर पर ऊँडेला । श्रावक को घोर वेदना हुई, परतु वह दृढ़ रहा । इसके बाद
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