Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कककककक
तं र्थंकर चरित्र - भाग ३
कककककककक कककककककककककककककककककककक ककककककककक
दे कर पौषधशाला में गया और उपासकप्रतिमा की आराधना करने लगा । कालान्तर में मध्यरात्रि में कामदेव के समक्ष एक मायी - मिथ्यादृष्टि देव प्रकट हुआ। वह एक महान् भयंकर पिशाच का रूप धारण किया हुआ था । उसके हाथ मे खड्ग था । वह घार गर्जना करता हुआ बोला ;
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" हे कामदेव ! तू दुर्भागी है । आज तेरे जीवन की अंतिम घड़ी आ गई है। तू बड़ा धर्मात्मा बन गया है और तुझे धर्म और मोक्ष की ही कामना है। तू एकमात्र मोक्ष की ही साधना में लगा रहता है और मेरे जैसे शक्तिशाली देव की अबतक उपेक्षा करता रहा। परन्तु तुझे मालूम नहीं है कि तेरी यह धर्म-साधना व्यर्थ है । छोड़ दे इस व्यर्थ के पाखण्ड को । मेरे कोपानल से बचने का एकमात्र यही उपाय है कि तू अपने स्वीकृत धर्म को छोड़ दे । यदि तूने अपनी हठ-धर्मी नहीं छोड़ी, तो मैं इस तीक्ष्ण खड्ग से तेरे शरीर के टुकड़ टुकड़े कर दूंगा और तू महान् दुःख को भोगता और रोता-बिलबिलाता हुआ अकाल में ही मर जायगा ।”
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पिशाच का विकराल रूप, भयानक गर्जना और कर्कश वचन सुन कर कामदेव डरा नहीं, विचलित भी नहीं हुआ, किन्तु शांतिपूर्वक धर्म-ध्यान में लान हो गया । देव ने दो-तीन बार अपनी कर्कश वाणी में यह धमकी दीं, परन्तु कामदेव ने उपेक्षा ही कर दी । जब देव ने देखा कि उसकी धमकी व्यर्थ गई, तो वह क्रुद्ध हो गया और तलवार के प्रहार से कामदेव के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये । कामदेव को घोर वेदना हुई । वेदना सहता हुआ भी वह धर्म ध्यान से विचलित नहीं हुआ । अपना प्रयत्न निष्फल हुआ जान कर देव वहाँ से पीछे हटा। उसने एक महान् गजराज का रूप बनाया और कामदेव के सम्मुख आ कर पुन: धर्म छोड़ने का आदेश दिया, परन्तु कामदेव ने पूर्ववत् उपेक्षा कर दी । हाथी रूपी देव ने कामदेव को सूँड से पकड़ कर आकाश में उछाल दिया और फिर नीचे गिरते हुए को दाँतों पर झेला और नीचे गिरा कर पाँवों से तीन बार रगदोला ( रगड़ा) । इससे उन्हें असह्य वेदना हुई, किन्तु उनकी धर्म- दृढ़ता यथावत् स्थिर रही। तदनन्तर देव ने हाथी का रूप छोड़ कर एक महानाग का रूप धारण किया और श्रमणोपासक के शरीर पर चढ़ कर गले को अपने शरीर से लपेटा और वक्ष पर तीव्र दंश दे कर असह्य वेदना उत्पन्न की। किन्तु जिनेश्वर भगवंत का वह परम उपासक, धर्म पर न्योछावर हो गया था । घोर वेदना होने पर भी वह अपनी दृढ़ता एवं ध्यान में अडिग हो रहा |
+ पिशाच के भयानक रूप का विस्तार युक्त वर्णन उपासकदशा सूत्र अध्ययन २ में है ।
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