Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
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पम की स्थिति वाला देव हुआ । वहाँ से च्यव कर महाविदेह मे मनुष्य होगा और संयम पाल कर मुक्त हो जायगा ।
श्रमणोपासक सद्दालपुत्र कुंभकार
पोलासपुर नगर में 'सद्दालपुत्र' नाम का कुंभकार रहता था । वह 'आजीविकोपासक' (गोशालक मति ) था । आजीविक सिद्धांत का वह पंडित था । इस मत पर उसकी पूर्ण श्रद्धा थी । वह अपने इस मत को ही परम श्रेष्ठ मानता था। वह तीन कोटि स्वर्णमुद्रा का स्वामी था और दस हजार गायों का एक गोवर्ग उसके पास था । नगर के बाहर उसके मिट्टी के बरतनों की पाँच सौ दुकानें थी। उन दुकानों में बहुत-से मनुष्य कार्य करते थे । उन कार्यकर्त्ताओं में कई भोजन पा कर ही काम करते थे, कई दैनिक पारिश्रमिक पर थे और कइयों को स्थायी वेतन मिलता था। वे लोग घटक, अर्ध घटक, गडुक, कलश, अलिंजर, जम्बूलक आदि बनाते थे और नगर के राजपथ पर ला कर बेचते थे । सद्दालपुत्र के 'अग्निमित्रा' नाम की सुन्दर पत्नी थी। एकदा सद्दालपुत्र मध्यान्ह के समय अशोक वाटिका में गोशालक की धर्म- प्रज्ञप्ति का पालन कर रहा था, तब उसके समीप अंतरिक्ष में एक देव उपस्थित हुआ और बोला-
" सद्दालपुत्र ! कल यहाँ सर्वज्ञ - सर्वदर्शी, भूत-भविष्य और वर्तमान के समस्त भावों के ज्ञाता त्रिलोक पूज्य देवों, इन्द्रों और मनुष्यों के लिये वन्दनीय, पूजनीय, सम्माननीय एवं पर्युपासनीय जिनेश्वर भगवंत पधारेंगे। तुम उन महान् पूज्य की वन्दना करना, उनका सत्कार-सम्मान करना और उन्हें पीठ फलकादि का निमन्त्रण देना ।" इस प्रकार दो-तीन बार कह कर देव अन्तर्धान हो गया ।
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देव का कथन सुन कर सद्दालपुत्र ने सोचा--' 'कल मेरे धर्माचार्य मंखलीपुत्र गोशालक आने वाले हैं। देव इसी की सूचना देने आया था ।" किन्तु दूसरे दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। सद्दालपुत्र ने सुना, तो वह भगवान् को वन्दन करने-सहस्राम्र वन उद्यान में गया और वन्दना नमस्कार किया । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया तत्पश्चात् गत दिवस देव द्वारा भगवान् के आगमन का भविष्य बता कर वन्दना करने की प्रेरणा देने का रहस्य प्रकट कर पूछा, तो सद्दालपुत्र ने कहा--"हाँ, भगवन् ! सत्य है । देव ने मुझ से कहा था ।'
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