Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३२२
तीर्थंकर चरित्र भाग ३ किककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक
आये उनके तेज से आकाश प्रकाशित रहा । परिषद् के कई लोगों को समय व्यतीत होने का भास नहीं हुआ और वहीं बैठे रहे । महासती चन्दनाजी को समय का ज्ञान हो गया था, सो वे उठ कर चले गये। उनके साथ अन्य साध्वियां भी चली गई, परन्तु सती मृगावत जी को दिन होने का भ्रम बना रहा और वे वहीं बैठी रही । जब चन्द्रसूर्य लौट गए और पृथ्वी पर अन्धकार छा गया, तब मृगावतीजी को भान हुआ। वे कालातिक्रम से डरी और समवसरण से उठ कर उपाश्रय आई।
मूल रूप से चन्द्र सूर्यावतरण अप्रत्याशित होने के कारण श्री गौतम स्वामी को आश्चर्य हआ। उन्होंने भगवान से पूछा--
"भगवन् ! चन्द्र-सूर्य का इस प्रकार आगमन अस्वाभाविक है ?"
"हां, गौतम ! इसे 'आश्चर्यभूत' कहते हैं । ऐसी आश्चर्यभूत घटनाएँ अनन्तकाल में कभी होती है । इस अवसर्पिणी काल में असाधारण घटनाएँ दस हुई हैं। यथा--
१ उपसर्ग २ गर्भहरण ३ स्त्री-तीर्थकर ४ अभावित परिषद् ५ वासुदेव का अपरकंका गमन ६ चन्द्र-सूर्य अवतरण ७ हरिवंशोत्पत्ति ८ चमरोत्पात ६ अष्टशत सिद्ध और १० असंयत-पूजा।
१ तीर्थंकर भगवान् को उपसर्ग नहीं होते। परन्तु भगवान् महावीर प्रभु को गोशालक ने उपसर्ग किया।
२ तीर्थंकर भगवान् का माता के गर्भ से संहरण नहीं होता। किन्तु भगवान् महावीर के गर्भ का देवानन्दाजी की कुक्षि से हरण कर के महारानी त्रिशलादेवी की कुक्षि में रखा गया।
३ पुरुष ही तीर्थकर होते हैं, स्त्री नहीं होती। परन्तु उन्नीसवें तीर्थंकर श्रीमल्लिनाथजी स्त्री-पर्याय से तीर्थकर हुए।
४ तीर्थंकर भगवान की प्रथम देशना खाली नहीं जाती, कोई सर्वविरत हो कर दीक्षित होता ही है । परन्तु भगवान् महावीर की प्रथम देशना में किसी ने अनगार-धर्म ग्रहण नहीं किया।
__५ एक वासुदेव दूसरे वासुदेव से नहीं मिलते । परन्तु श्री कृष्णवासुदेव का धातकी खण्ड के कपिल वासुदेव से ध्वनि-मिलन हुआ। श्रीकृष्ण वासुदेव द्रौपदी को लेने धातकी खण्ड की अपरकंका नगरी गये थे।
६ चन्द्र-सूर्य का स्वाभाविक रूप में अवतरण । - यह प्रसंग पृष्ठ ३३४ पर है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org