Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
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वेणा तट से राजगृह की ओर
नन्दा का हृदय प्रसन्नता से भर गया । माता और पुत्र आवश्यक सामग्री और संत्रक दल साथ ले कर चले । वे क्रमशः आगे बढ़ते हुए राजगृह पहुँचे और उद्य न में ठहरे । अभयकुमार अपनी माता को उद्यान में ही छोड़ कर, कुछ अनुचरों के साथ नगर मे पहुँचा ।
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अभयकुमार की बुद्धि का परिचय
श्रेणिक नरेश के मन्त्री मण्डल में ४९९ मन्त्री थे। इन पर प्रधान मन्त्री का पद रिक्त था । उस पद को पूर्ण करने के लिये नरेन्द्र किसी ऐसे पुरुष की खोज में था कि जो योग्यता में इन सब से श्रेष्ठ हो । ऐसे बुद्धिनिधान पुरुष की परीक्षा करने के लिए राजा ने एक निर्जल कूप में अपनी अंगूठी डलवा दी और नगर में उद्घोषणा करवाई क-'जो बुद्धिमान् पुरुष कुएँ में उतरे बिना ही, किनारे खड़ा रह कर, मेरी अगूठी निकाल देगा, उसे महामन्त्री पद पर स्थापित किया जायगा ।"
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ढिंढोरा सुन कर लोग कहने लगे--" यह कैसा आदेश है ? क्या राजा सनकी तो नहीं है ? कहीं निर्जल अँड कुएँ में गिरी हुई अंगूठी, को किनारे खड़ा रह कर भी कोई मनुष्य निकाल सकता है ?" कोई कहना -“हाँ, निकाल सकता है, जो पुरुष पृथ्वी पर खड़ा रह कर आकाश के तारे तोड़ सकता है, वही कुएँ में से अंगूठी निकाल सकता है ।" अभयकुमार ने भी वह घोषणा सुनी। वह कुएँ के पास आया और उपस्थित मनुष्यों के समक्ष बोला'यह अंगूठी राजाज्ञानुसार निकाली जा सकती है ।' लोगों ने देखा -- एक भव्य आकृतिवाला नवयुवक आत्म-विश्वास के साथ खड़ा है । उसके मुखमण्डल पर गंभीरता बुद्धिमत्ता और तेजस्विता झलक रही है ।
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"कहाँ है राज्याधिकारा ! में महाराजाधिराज की आज्ञानुसार मुद्रिका निकाल सकता हूँ" -- अभयकुमार ने कहा ।
राज्याधिकारी उपस्थित हुआ। कुमार ने आर्द्र गोमय मँगवाया और कुएँ में रही जगूठी पर डाला। अंगूठी गोमय में दब गई। उसके बाद उप गोमय पर घास का ढेर डाल कर उसे आग से जला दिया। घास जलने पर गोमय सूख गया। तत्पश्चात् अभयकुमार ने निकट के कुएँ का पानी इस कुएँ में भरवाया । ज्यों-ज्यों पानी कुएँ में भरता गया, त्यों-त्यों
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