Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
नन्दीसेन कुमार और सेचनक हाथी
गर्भ से नारी ही उत्पन्न होती, तो जीवित रह सकती थी । परन्तु नर-बच्चा होता, तो यूथपति उसे मार डालता। वह नहीं चाहता था कि उसकी हथिनियों का भोक्ता कोई दूसरा उत्पन्न हो और उसके लिये बाधक बने । उसके यूथ की एक हस्तिनः के गर्भ में, यज्ञकर्त्ता ब्राह्मण का जीव भी, अनेक भव-भ्रमण करता हुआ आया । हथिनी को विचार हुआ'यह पापा यूथपति मेरे बच्चे को मार डालेगा। पहले भी मेरे कई बच्चे इसने मार डाले । इसलिये में इसका साथ छोड़ कर अन्यत्र चली जाऊँ " - इस प्रकार सोच कर वह लंगड़ाती हुई- चलने लगो, जैसे पाँव में कोई काँटा लगा हो, या रोग हो । इस प्रकार वह यूथ से पोछे रह कर विलम्ब से आने लगी। यूथपति ने सोचा- ' यह अस्वस्थ है, इसलिये रुकती और विश्राम लेती हुई विलम्ब से स्वस्थान आती है। इस प्रकार कभा एक प्रहर दो प्रहर और एक दिन विलम्ब से आ कर यूथ में मिलती । उसे विश्वास हो गया कि अब दो दिन का विलम्ब भी स्वामी को शंकास्पद नहीं होगा । वह यूथ छोड़ कर अन्य दिशा में वेगपूर्वक चलो । आगे चल कर व लंगड़ाती हुई तपस्वियों के आश्रम तक पहुँची और वहीं रह गई। उनके बच्चा हुआ। कुछ दिन उसका पालन कर के वह अपने यूथ में लौट गई । तपस्वी उस गजपुत्र का पालन करने लगे । वह कलभ भी तपस्वियों से हिल गया । वह सूंड में कलश पकड़ कर तपस्वियों को स्नान कराता, उनके पास बैठ कर सूंड उनकी गोद में रखता और उनका अनुकरण करता हुआ वह सूंड में जल भर कर वृक्षों और लताओं को सिंचन करता । इस प्रकार सिंचन करने से तापसों ने उसका नाम 'सेचनक' दिया। वह बड़ा हुआ, बड़े-बड़े दाँत निकले, सभी अंग पुष्ट हुए और वह ऊंचा पूरा मदमस्त गजगज हुआ । उसके गंडस्थल से मद झरने लगा । एकबार वह नदी पर जल पीने गया। वहां उसने उस यूथपति हाथी को देखा । दोनों क्रुद्ध हुए और भिड़ गए। युवक सेचनक ने वृद्ध यूथपति (पिता) को मार डाला और स्वयं उस यूथ का स्वामी बन गया। उसे विचार हुआ कि ' जिस प्रकार मेरी माता ने गुप्त रूप से तापसों के आश्रम में मुझे सुरक्षित रखा और मैंने बड़ा हो कर अपने पिता को मार डाला, उसी प्रकार भविष्य में कोई हथिनी अपने बच्चे को इस आश्रम में रख कर गुप्त रूप से पालन करे, तो वह मेरे लिए भी घातक हो सकता है । इसलिए इस आश्रम को ही नष्ट कर देना चाहिए, जिससे गुप्त रहने का स्थान ही नहीं रहें ।" उसने उस आश्रम को नष्ट कर दिया। तपस्वियों ने भाग कर महाराजा श्रेणिक से निवेदन किया"महाराज ! एक बहुत ही ऊँचा सुन्दर एवं सुलक्षण सम्पन्न हाथी, हमारे आश्रम के निकट है | वह आपकी गजशाला की शोभा होने के योग्य है । आप उसे पकड़वा कर मँगवा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
२६३
www.jainelibrary.org