Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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यासा सासा का रहस्य x x स्वर्णकार की कथा
को पुत्रो का द्यस्यान सहलाते देखा, तो क्रोधित हो गया और मार-पीट कर घर से निकाल दिया। उसे इस पुत्र से भविष्य में अपना कुल कलंकित होना दिखाई दिया । घर से निकाला हुआ वह भटकता-भटकता उस चोर-समूह में मिल गया। इधर उसकी बहिन यौवन वय में अति कामुक हो कर कुलटा बन गई । वह स्वेच्छाचारिणी किसी प्रकार एक चोर के हाथ लग गई और चोर उसे अपनी पल्ली में ले आया। अब वह सभी के साथ दुराचार का सेवन करने लगी। सारी चोरपल्ली में वह अकेली थी। इसलिये चोर एक दूसरी स्त्री का हरण कर लाये । किन्तु दुसरी स्त्री उसे खटकी । उसने उसे मारने का संकल्प कर लिया। एक दिन सभी चोर चोरी करने गये, तो उसने अपनी सौत को छल से कुएँ के निकट ले जा कर झाँकने का कहा । वह झाँकने लगी, तो इस दुष्टा ने उसे धक्का दे कर गिरा दिया। वह मर गई । चोरों ने लौट कर दूसरी स्त्री को नहीं देखा, तो कूलटा से पूछा और खोज करने लगे। उस समय उस ब्राह्मणपुत्र की दृष्टि उस पर जमी और उसके मन में सन्देह उठा-" यह स्त्री मेरो बहिन तो नहीं है ?" वह मन ही मन घुलने लगा। इतने में उसे कौशाम्बी जाना पड़ा । वहाँ उसने सुना कि-" यहाँ सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् पधारे हैं।" वह अपना सन्देह मिटाने के लिए मेरे निकट आया और मन से ही पूछा । मैने बोल कर पूछने का कहा, तो उसने संकेताक्षरों का उच्चारण किया-"यासा सासा ?'' अर्थात् “वह वही (मेरी बहिन) है ?'' मैंने उत्तर दिया-"एवमेव"-हाँ वहो है । इस उत्तर से उसके हृदय में संसार के प्रति विरक्ति बढ़ी और वहीं दीक्षित हो गया। फिर वह पल्ली में आया और सभी चोरों को प्रतिबोध दिया। वे भी निग्रंथ. श्रमण बन गए।"
भगवान का उपदेश पूर्ण होते ही मृगावती देवी उठी और भगवान् की वन्दना कर के बोली-"प्रभो ! मैं चण्डप्रद्योत राजा की आज्ञा ले कर श्रीमुख से प्रव्रज्या लेना चाहती हूँ।" और चण्डप्रद्योत के निकट आ कर बोली-" राजन् ! अनुमति दीजिये। में भगवान् से प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहती हूँ। मुझे अब संसार में नहीं रहना है । मेरा पुत्र उदयन तो अब आपके रक्षण में है ही ।'' भगवान् के प्रभाव से चण्डप्रद्योत भी शांत हो गया था। उसने उदयन को कौशाम्बी का अधिपति सर्व कार किया और मृगावती को दीक्षा लेने की अनुमति दी । म गावती और उसके साथ चण्डप्रद्य त की अंगारवती आदि आठ रानियों ने भी दीक्षा अंगीकार की। भगवान् ने उन्हें दीक्षित कर के महासती चन्दनबाला को प्रदान की।
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