Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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के कानों में पड़ी, तो उसने सेवकों से कोलाहल का कारण पूछा। भगवान् का ब्रह्मकुण्ड पदार्पण जान कर जमाली भी निकला । भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर वह प्रभावित हुआ। वैराग्य - रंग की तीव्रता से उसने संसार का त्याग कर संयमी बनने का निश्चय किया । भगवान् को वन्दना कर के जमाली क्षत्रियकुण्ड में अपने भवन में आया और माता-पिता से दीक्षा की अनुमति माँगी । माता-पिता ने पुत्र को रोकने का अथक प्रयत्न किया। परन्तु जमाली की दृढ़ता के कारण उन्हें अनुमत होना पड़ा । भव्य महोत्सव पूर्वक जमाली क्षत्रियकुमार का अभिनिष्क्रमण हुआ और ब्राह्मणकुण्ड पहुँच कर जमाली ने पाँच सौ विरागियों के साथ दीक्षा ग्रहण की। भगवान् की पुत्री और जमाली की पत्नी प्रियदर्शना भी एक हजार महिलाओं के साथ प्रव्रजित हो कर महासती चन्दनबाला की शिष्या हुई । जमाली अनगार तप-संयम का पालन करते हुए ज्ञानाभ्यास करने लगे । उन्होंने ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया और तपस्या भी बहुत की ।
जमाली अनगार के मिथ्यात्व का उदय
अन्यदा जमाली अनगार ने भगवान् को वन्दना कर के निवेदन किया-
'भगवन् ! यदि आपकी आज्ञा हो, तो मैं अपने पाँच सौ श्रमणों के साथ पृथक् विहार कर ग्रामानुग्राम विचरना चाहता हूँ ।"
तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
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भगवान् ने जमाली की माँग स्वीकार नहीं की और मौन रहे । जमाली अनगार ने अपनी माँग दो-तीन बार दुहराई, परन्तु भगवान् ने अनुमति नहीं दी और मौन ही रहे । जमाली का भविष्य में पतन होना अनिवार्य था । भगवान् के मौन को भी जमाली ने अनुमति मानी और अपने पाँच सौ साधुओं के साथ विहार कर चल दिया ।
जमाली अनगार सपरिवार विचरते हुए श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान में आये । गृहस्थ- पर्याय में सरस एवं पौष्टिक आहारादि से पोषित और राजसी वैभव में सुखपूर्वक पला हुआ शरीर, श्रमण- पर्याय में अरस-विरस - रुक्ष तुच्छ और असमय तथा अपूर्ण आहारादि तथा शीत तापादि कष्टों और तपस्या से उनका शरीर रोग का घर बन गया । उन्हें
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* ग्रन्थकार भगवान् का क्षत्रियकुण्ड में पधार कर जमाली को दीक्षित करना लिखते हैं। परन्तु भगवती सूत्र शतक ९ उद्देशक ३३ में ब्राह्मणकुण्ड में ही भगवान् का विराजने और जमाली का क्षत्रियकुण्ड से ब्राह्मणकुण्ड आ कर दीक्षित होने का उल्लेख है ।
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