Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जमाली चरित्र
२९१ ဖုန်း ၀၈၀၀ ၈၀နီးနီနီနန်နန
आभूषण तंग हो गए, शरीर प्रफुल्लित हुआ और स्तन पयपरिपूर्ण हुए। वह निनिमेष दृष्टि से भगवान् को देखने लगी।
देवानन्दा को हर्षावेग युक्त एकटक निहारती देख कर श्री गौतम स्वामीजी ने भगवान् से पूछा ;---
"भगवन् ! आपको देख कर देवानन्दा इतनी हर्षित क्यों हुई कि आपको एकटक देखे ही जा रही है। इसको इतना हर्ष हुआ कि शरीर एवं रोमकूप तक विकसित हो गए ?"
"गौतम ! देवानन्दा मेरी माता है और मैं देवानन्दा का पुत्र हूँ। पुत्र-स्नेह के कारण ही देवानन्दा अत्यधिक हर्षित हई।"
भगवान् ८२ रात्रि-दिन देवानन्दा के गर्भ में रहे थे । उसके बाद शक्रेन्द्र की आज्ञा से हरिणैगमेषी देव ने गर्भ का संहरण कर त्रिशलादेवी के गर्भ में स्थापित किया था।
भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। ऋषभदत्त और देवानन्दा संसार से विरक्त हुए। उन्होंने वहीं भगवान से प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। वे घर से भगवान् को वन्दन करने निकले थे और दीक्षित हो गए। लौट कर घर गये हो नहीं । दीक्षित होने के बाद उन्होंने तप और संयम की खूब साधना की और सिद्धगति को प्राप्त हुए ।
जमाली चरित्र
ब्राह्मणकुण्ड के पश्चिम में क्षत्रियकुण्ड नगर था। उस नगर में 'जमाली' नाम का क्षत्रिय कुमार रहता था+ । वह सम्पत्तिशाली समर्थ एवं शक्तिशाली था। वह अपने विशाल भव्य-भवन में सुन्दर सुलक्षणी पत्नियों के साथ, पाँचों इन्द्रियों के उत्तम भोग भोग रहा था। छहों ऋतुओं की उत्तम वस्तुओं से सुखभोग करता हुआ वह जीवन व्यतीत कर रहा था।
श्रमण भगवान महावीर स्वामी ब्राह्मणकुण्ड नगर के बाहर बहुशाल उद्यान में बिराज रहे थे । क्षत्रियकुण्ड नगर की जनता ने जब यह जाना कि भगवान् ब्राह्मणकुण्ड के उपवन में बिराज रहे हैं, तो लोग भगवान् की वन्दना करने के लिए ब्राह्मणकुण्ड की ओर जाने लगे। नगर में हलचल मच गई । कोलाहल की ध्वनि भोग-रत जमालीकुमार
+ ग्रन्थकार जमाली को भगवान् का भानेज और जामाता लिखते हैं।
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