Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र भाग ३ Pৰুৰুৰুৰুৰুকৰুৰুৰুৰুকৰুৰুৰুকৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুৰুষৰু हुए थे। मार्ग में उसे चोर मिले और लूटने लगे। युवती ने कहा-" बन्धुओं ! इस समय में अपने वचन का पालन करने जा रही हूँ। जब लौट कर मैं आऊँ, तब तुम मेरे आभूषण ले लेना । अभी मुझे वैसी ही जाने दो।' चोरों ने उसके स्वच्छ हृदय की बात पर विश्वास किया और बिना स्पर्श किये ही जाने दिया।
आगे बढ़ने पर उसे एक क्षुधातुर मनुष्यभक्षी राक्षस मिला और उसे मार कर खाने को तत्पर हुआ । नवोढ़ा ने उस से कहा-"पहले मुझे अपने वचन का पालन करने दो। लौटने पर खा लेना । चोरों ने भी मुझ पर विश्वास कर के छोड़ दिया है।" राक्षस भी मान गया । वहाँ से आगे बढ़ कर वह बगीचे पहुँची। उद्यानपालक भरनींद सोया हुआ था। उसने उसे जगाया और बोली-"मैं अपना चन निभाने के लिए आई हूँ।"
अचानक नींद से उठा हुआ माली उसे देख कर स्तब्ध रह गया। उसने पूछा"इतनी रात गये तु अकेली कैसे आई ?"
"मैं अपने धर्म पर निर्भर एवं निर्भय हूँ। मुझे किस का डर है । मुझ पर विश्वास कर के मेरे पति ने चोरों ने, और राक्षस ने भी मुझे छोड़ दिया और तुम्हारे पास जाने दिया। मेरी बात पर किसी ने अविश्वास नहीं किया । यदि मेरा मन शुद्ध नहीं होता, तो समागम की प्रथम रात्रि में मेरे पति मुझे पर-पुरुष के पास आने देते । उन्होंने बिना किसी हिचक के प्रसन्नतापूर्वक मुझे अनुमति प्रदान कर दी।"
अप्सग के समान सुन्दर नवोढ़ा की बात सुन कर उद्यानपालक सन्न रह गया। उसका विवेक जाग उठा । उसने उस युवती को देवी के समान पवित्र मान कर प्रणाम किया और आदरपूर्वक लौटा दी। लौटते समय वह भूखा राक्षस प्रतीक्षा करता हुआ मिला । उमने पूछा- “माला को संतुष्ट कर आई ?"-"नहीं, माली के मन में मेरे पति चरों और आके विश्वास का प्रभाव पडा। उसके मन में सोया हआ विवेक जाग्रत हआ। उसने मुझे बहिन के मान आदर किया और सम्मानपूर्वक लोटा दी।"
राक्षस ने कहा-'जब माली ने इसकी सच्चाई का आदर किया और सम्मानपूर्वक लौटा दी, तो क्या मैं उससे भी गया बीता हूँ ? नहीं, जा बहिन ! मैं भी तेरे सत्याचरण से संतुष्ट हूँ।"
___ राक्षस से सुरक्षित महिला आगे बढ़ी । चोर भी उससे प्रभावित हुए और बिना लूट आदर पूर्वक उसे घर पहुंचाई । प्रतीक्षारत पति साग वृत्तांत सुन कर अत्यन्त प्रपन्न हुआ आर आने का सौभाग्यवन्त मानने लगा। उसने पत्नो को अपने सवस्व का स्वामिनी बनाई । उनका जीवन सुखशान्ति और धर्मपूर्वक व्यतीत होने लगा।"
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