Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चेटक ने श्रेणिक की माँग ठुकराई
२४५ कलाकTadpapari.arinaraकलकलययनकककककक
३ मगावती के रूग्न · कौशाम्बी नगरी' के राजा · शतानिक' के साथ किये। ४ शिवा कुमारा · उज्जयिनी' के शासक महाराज ' चण्डप्रद्योत' को व्याही । ५ कुमारी ज्येष्ठा के लग्न 'क्षत्रियकुण्ड नगर' के नरेश 'नन्दीवर्द्धन' के साथ किये,
जो भगवान् महावीर प्रभु के ज्येष्ठ-भ्राता थे ।
उपर क्त पाँच कुमारियों के लग्न करने के बाद शेष सुज्येष्ठा और चिल्लना कुँवारी रही थी । ये दोनों बहिनें अनुपम सुन्दर थी। उनकी दिव्य आकृति और वस्त्रालकार से सुपज्जित छटा मनोहारी थी । वे दोनों प्रेमपूर्वक साथ ही रहती थी। वे सभी कलाओं में निपुण थी । विद्याओं और गूढार्थों की ज्ञाता थी । विद्या विनोद में उनका समय व्यतीत हो रहा था । धर्म-साधना में उनकी रुचि थी और वे सभी कार्यों में साथ रहती थी।
चेटक ने श्रेणिक की मांग ठुकराई
एक बार एक शौचधर्म की प्रवतिका अन्तःपुर में आई और अपने शुचि-मूल धर्म का उपदेश करने लगी। राजकुमारी सुज्येष्ठा ने उसके उपदेश की निस्सारता बता कर खण्डन किया। प्रत्तिका अपना प्रभाव नहीं जमा सकी । वह अपने को अपमानित मानती हई द्वेष पूर्ण हृदय हो कर चली गई। उसने निश्चय किया कि इस कुमारी का किसी विधर्मी से सम्बन्ध करवा कर इसके धर्म को परिवर्तित करवाऊँ तथा अनेक सपत्नियों में जकड़ा दूं, तभी मुझे शांति मिल सकती है । उसने सुज्येष्ठा का रूप ध्यान में जमा कर एक वस्त्रपट पर आलेखित किया और राजगृह पहुँची। उसने वह चित्र-पट महाराजा श्रेणिक को बताया । श्रेणिक की दृष्टि उस चित्र में गढ़-सी गई । वह लीनतापूर्वक उसे देखता रहा । अन्त में श्रेणिक ने चित्रांगना का परिचय जान कर, एक दूत वैशाली भेजा और चेटक नरेश से सुज्येष्ठा की मांग की। चेटक नरेश ने दूत से कहा ;--
“ मैं हैयय' कुल का हूँ और तुम्हारे स्वामी 'वाही' कुल के हैं । कुल की विषमता के कारण यह सम्बन्ध नहीं हो सकता।"
दूत से चेटक का उत्तर सुन कर श्रेणिक खिन्न हो गया। निष्फल-मनोरथ के साथ अपमानकारी वचनों ने भी उसे उदास बना दिया, जैसे वह शत्रु से पराजित हो गया हो।
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