Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सुलसा श्राविका की कथा
- २४९ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक्रक्कम
सुलपा ने कहा--"स्वामी ! मैं अरिहंत भगवान् की आराधना करूँगी । जिनेश्वर भगवंत की आराधना से सभी प्रकार के इच्छित फल प्राप्त होते हैं।"
गुलमा ब्रह्म वर्य युक्त आचाम्ल आदि तप कर के भगवान् की आराधना करने लगी।
सौधर्म-स्वर्ग में देवों की सभा में शक्रेन्द्र ने कहा--"अभी भरत-क्षेत्र में सुलसा श्रामिका, देव-गुरु और धर्म की आराधना में निष्ठापूर्वक तत्पर है।" इन्द्र की बात पर एक देव विश्वास नहीं कर सका और वह सुलसा की परीक्षा करने चला आया । सुलसा आराधना कर रही थी। वह साधु का रूप बना कर आया। मुनिजी को आया जान कर सुलसा उठो और बन्दना की। मुनिराज ने कहा--"एक साधु रोगी है । वैद्य ने उसके उपचार के लिए लक्षपाक तेल बताया । यदि तुम्हारे यहाँ हो, तो मुझे दो, जिससे रोगी साधु का उपचार किया जाय ।" सुलसा हर्षित हुई। उसके मन में हुआ कि मेरा तेल साधु के उपयोग में आवे, इससे बढ़ कर उसका सदुपयोग और क्या होगा। वह उठी और तेल-कुंभ लाने गई । कुंभ ले कर आ रही थी कि देव-शक्ति से कुंभ उसके हाथ से छूट कर गिर पड़ा और फूट गया। सारा तेल दुल गया। वह दूसरा कुंभ लेने गई। दूसरा कुंभ भी उसी प्रकार फूट गया, किन्तु उसके मन में रंचमात्र भी खेद नहीं हुआ। वह तीसरा कुंभ लाई और उसकी भी वही दशा हुई। अब उसे खेद हुआ। उसने सोचा--"मैं कितनी दुर्भागिनी हूँ कि मेरा तेल रोगी साधु के काप्त नहीं आया।" उसे बहुमूल्य तेल नष्ट होने की चिन्ता नहीं हुई । दुःख इस बात का हुआ कि साधु की याचना निष्फल हुई।" देव ने जब सुलसा के भात्र जाने तो वह अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुआ और बोला--
“भद्रे ! शक्रेन्द्र ने तुम्हारी धर्मदृढ़ता की प्रशंसा की । मैं उस पर विश्वास नहीं कर मका और तुम्हारी परीक्षा के लिए साधु का वेश बना कर आया । अब मैं तुम्हारी धर्मदृढ़ता देख कर संतुष्ट हूँ। तुम इच्छित वस्तु माँगो। मैं तुम्हारी मनोकामना पूर्ण कलंगा।'
सुलसा ने कहा--- "देव ! आप मुझ पर प्रसन्न हैं. तो मुझे पुत्र दीजिये। मैं अपुत्र हैं। इसके अतिरिक्त मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।"
देव ने उसे बतीस गुटिका दी और कहा--"तू इन्हें एक के बाद दूसरी, इम प्रकार अनुभम से लेना । तेरे बत्तीस पुत्र होंगे । इसके अतिरिक्त जब तुझे मेरी सहायता की आवश्यकता हो. तब मेरा स्मरण करना। मैं उसी समय आ कर तेरी सहायता करूँगा।" देव अदृश्य हो कर चला गया।
सुरमा ने मोचा-अनुक्रम से गुटिका लेने पर अनुक्रम से एक के बाद दूसरा पुत्र हो और जीवाभर उनका मलमूत्र साफ करती रहूँ। इससे तो अच्छा है कि एकसाथ ही सभी
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