Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेरा बाप कौन है-अभयकुमार से प्रश्न
२४१ နုနီးနီ ၈၀၀ ၈၆၀၃၈၈၆ ၈၇၈၉န်ဖုန်း
शाली था। उसने राजा से मिल कर नन्दा का दोहद पूर्ण करवाया। राज्य के हाथी पर आरूढ़ हो कर उसने याचकों को दान दिया और जीवों को अभयदान दे कर मृत्यु के भय से मुक्त करवाया। गर्भकाल पूर्ण होने पर नन्दा ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । मातामह ने दोहद के अनुसार दोहित्र का नाम 'अभयकुमार' रखा । अभयकुमार के लालनपालन और शिक्षण का समुचित प्रबन्ध हुआ। आठ वर्ष की वय में ही वह पुरुषोचित वहतर कला में प्रवीण हो गया। एकबार वच्चों के साथ खेलते हुए अभयकुमार का किन्हीं बच्चों से विवाद छिड़ गया। एक ने कहा--
“अरे तू ऊँचा हो कर क्यों बोलता है ? तेरे बाप का तो पता ही नहीं है । हम सब के बाप हैं, फिर तेरे बाप क्यों नहीं है ? तेरा बाप कौन है ?"
उपरोक्त वचनों ने अभय के हृदय को भाले के समान वेध दिया। वह तत्काल घर आया और माता से पूछा;--
"माता ! मेरे पिता कौन है, और कहाँ है ?"
--"तेरे पिता ये सुभद्र सेठ हैं। यही तो तेरा पालन-पोषण करते हैं"--नन्दा ने पुत्र को बहलाया।
--"नहीं माता ! सुभद्र सेठ तो आपके पिता हैं । मेरे पिता कोई अन्य ही है । आप मुझे उनका परिचय दें।"
नन्दा को रहस्य खोलना ही पड़ा । वह उदास हो कर बोली ;--" वत्स ! कोई विदेशो भव्य पुरुष आ कर यहाँ रहे थे । उनकी भव्यता, कुलीनता और बुद्धिमत्ता दि देख कर मेरे पिताश्री ने उनके साथ मेग लग्न कर दिया। वे यहीं रह गये । कालान्तर में एक दिन कुछ ऊँट सवार उन्हें खोजते हुए आये। उनसे कुछ बातें की और वे उनके साथ चले गये । उप समय तू गर्भ में था। उसके बाद उनके कोई समाचार नहीं मिले।"
-- क्या जाते समय पिताजी ने कुछ कहा था '--अभय ने पूछा ।
--"हाँ, मुझे आश्वासन दिया था और ये कुछ शब्द लिख कर दिये थे"--नन्दा ने श्रेणिक के लिखे शब्द बताये ।
उन शब्दों को पढ़ कर अभय प्रसन्नता से खिल उठा और उत्साह पूर्वक बोला--
"माता ! मेरे पिता तो राजगृह नगर के राजा--मगध साम्राज्य के अधिपति हैं । चलिये, हम अपने राज्य में चलें।"
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