Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र-भा. ३
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सब की ओर देख रहा था। अपने भाइयों के चले जाने के बाद श्रेणिक ने जल भरे कलश के नीचे बरतन रखवाया, जिससे कलश में से चूता हुआ जल एकत्रित हो और करंडिये को हिलाया, जिससे लड्डु बिखर कर चूरा बना और छिद्रों में से खिर कर बाहर आया। श्रेणिक ने मोदक भी खाया और वह पानी भी पीया । दूसरी परीक्षा में भी श्रेणिक ही सफल हुआ । राजा को विश्वास हो गया कि इन सभी पुत्रों में एक श्रेणिक ही राज्याधिकार पाने के योग्य है और यही राज्य का पालन और रक्षण कर सकेगा।
कुशाग्र नगर में अग्निकाण्ड बार-बार होने लगे। इससे राजा ने घोषणा करवाई कि जिसके यहाँ से आग लग कर घर जलावेगी, उसे नगर से निकाल दिया जायगा । एक दिन रसोइये की भूल से राजभवन में ही आग लगी और बढ़ कर राजमहालय को जलाने लगी। राजा ने कुमारों से कहा- "इस भवन में से तुम जो कुछ ले जाओगे, वह सब तुम्हारा हो जायगा।"
सभी कुमारों ने इच्छानुसार मूल्यवान् वस्तु उठाई और चल दिये, किन्तु श्रेणिक तो एक भंभा ही ले कर चला। राजा ने श्रेणिक से पूछा-"तुमने कोई मूल्यवान् वस्तु नहीं ले कर यह भंभा ही क्यों ली ?" श्रेणिक बोला--
'पूज्य ! सभी मूल्यवान् वस्तुएँ इस भंभा से प्राप्त हो सकती है । यह राजाओं का प्रथम जयघोष है । इसका नाद राजाओं के दिग्विजय में मंगलरूप होता है और जहाँ इसका विजयवाद्य होता है, वहाँ सभी मूल्यवान वस्तुएँ चली आती है । इसलिये इस मंगलवाद्य की रक्षा तो सब से पहले होनी चाहिये।" श्रेणिक की सूझबूझ, दीर्घदृष्टि और बद्धिमत्ता से राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और भंभा बजाने के कारण उसका नाम 'भभसार'
रख दिया।
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राजगृह नगर का निर्माण
राजा ने पहले यह घोषणा करवाई थी कि "जिसके घर से आग लगेगी, उसे नगर से निकाल दिया जायगा।' अब राजभवन में आग लगी, तो राजा ने स्वयं ने उस घोषणा का पालन करने का निश्चय किया। राजा ने परिवार के साथ कुशाग्र नगर का त्याग कर के एक गाउ दूर पड़ाव डाला । वह स्थान राजा को अच्छा लगा, सो वहीं नगर-निर्माण किया जाने लगा। नागरिकजन भी राजा के साथ ही नगर छोड़ कर चले आये थे। अपनी समस्या के समाधान के लिये लोग राजा के पास आते। उन्हें कोई पूछता कि 'कहाँ जाते
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