Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तीर्थकर चरित्र-भा. ३
........................
होता है, उसी धन और स्त्री का उसकी मृत्यु के बाद दूसरे लोग उपभोग करते हैं । इसलिए मोह को छोड़ कर धर्म का आचरण करो ।" (उतराध्ययन सत्र अ. १८)
भगवान् के अपने उपदेश में प्रायः यही विषय रहता है कि-" जीव अपने अज्ञान एवं दुराचार से किस प्रकार बन्धनों में जकड़ता है और परिणाम स्वरूप दुःख भोगता है। समस्त बन्धनों से मुक्त होने का उपाय क्या है । वि स रीति से जीव समस्त दुःखों का अन्त करके मुक्त होकर परम सुखी बन जाता है । इस प्रकार के भावों का भगवान् अपने उप . देश में प्रतिपादन करते हैं । (ज्ञाता-१)
उस परिषद् में सर्वविरत होने योग्य कोई मनुष्य नहीं था-वह अभावित परिषद् थी। इसलिये भगवान् की वह देशना बिना सर्वविरति के खाली ही गई । यह आश्चर्यभूत घटना थी। क्योंकि तीर्थंकर भगवन्तों की प्रथम देशना व्यर्थ नहीं जाती, कोई सर्वविरत होता ही है । परन्तु भगवान् महावीर की देशना खाली गई। इन्द्रादि देवों ने केवल-महोत्सव कर के समवसरण की रचना की थी। इसलिये भगवान् ने कल्पानुसार देशना दी।
भगवान् भिका से विहार कर मध्यम-अपापा नगरी पधारे । इस नगरी के सोमिल नामक धनाढ्य ब्राह्मण ने एक महायज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ को सम्पन्न करवाने के लिये उसने अपने समय के वेदों के पारगामी, महाविद्वान ऐसे ग्यारह ब्राह्मण उपाध्यायों को आमन्त्रित किया था। उसका परिचय इस प्रकार है ; --
१-३ इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति । ये तीनों बान्धव थे । इनका निवास स्थान गोबर ग्राम था। इनके पिता का नाम 'वसुभति,' माता का नाम 'पृथ्वी' था। वे ‘गौतम गोत्रीय' थे । इनकी उम्र क्रमशः ५०, ४६ और ४२ वर्ष थी।
४ कोल्लाक सन्निवेश के भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण 'धनमित्र' की भार्या वारुणी' के पुत्र थे। उनका नाम 'व्यक्त' था। इनकी अवस्था ५० वर्ष थी।
५ सुधर्मा । ये भी कोल्लाक सन्निवेश के अग्निवेश्यायन-गोत्रीय 'धम्मिल' ब्राह्मण की पत्नी 'भद्दिला' के अंगजात थे । ये भी ५० वर्ष के थे ।
६ मंडितपुत्र । मौर्य सन्निवेश के वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण, 'धनदेव' पिता और 'विजयादेवी' माता से उत्पन्न हुए थे । ये ५३ वर्ष के थे।
७ मौर्यपुत्र । ये भी मौर्य ग्राम के निवासी काश्यप-गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org