Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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धर्म-देशना
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"कर्म-बन्ध के कारण जीव अत्यन्त वेदना वाली नरकादि मनुष्येतर योनियो में जा कर अनेक प्रकार के दुःव भोगता है और जब पाप-कर्षों से हलका होता है, तो मनुष्य. भव प्राप्त करता है । इस प्रकार मनुष्य-भव महान् दुर्लभ है।"
"यदि मनुष्य-जन्म भी मिल गया, तो धर्म-श्रवण का योग मिलना दुर्लभ है और पुण्य-योग से कभी धर्म सुनने का सुयोग मिल गया, तो सद्धर्म पर श्रद्धा होना महान् दुर्लभ है । बहुत-से लोग तो धर्म सुन कर और प्राप्त करके फिर पतित हो जाते हैं।"
"धर्म-श्रवण करके प्राप्त भी कर लिया, तो उस में पुरुषार्थ करके प्रगति साधना महान् कठिन है । धर्म वहीं ठहरता है, जिसका हृदय सरल हो।"
"हे भव्य जीवों! मनुष्य जन्म, धर्म-श्रवण, धर्म-श्रद्धा और धर्म में पुरुषार्थ, इन चार अंगों को साधना में बाधक होने वाले पाप-कर्मों को एवं इनके दराचारादि कारणों को दर करो और ज्ञानादि धर्म की वृद्धि करो । इससे उन्नत हो सकोगे' (उत्तराध्ययन सूत्र ३) ।
"टूटा हुआ जीवन फिर नहीं जुड़ता, इसलिए सावधान हो जाओ, आलस्य और आमक्ति को छोड़ो। समझ लो कि जब वृद्धावस्था आयेगी और शरीर में शिथिलता तथा रोगों का आतंक होगा, तब तुम्हारी कौन रक्षा करेगा ? जब मौत आयेगी तब सब धन - अनेक प्रकार के पाप से संग्रह किया हुआ धन, यहीं धरा रह जायगा और जीव पाप का फल भुगतने के लिए नरक में जा कर दुःखी होगा । जीव अपने दुष्कर्मों से उसी प्रकार नरक में जाता है, जिस प्रकार सेंध लगाता हुआ चोर, पकड़ा जाकर जेलखाने में जाकर दुख पाता है, क्योंकि किये हुए कर्मों का फल भुगते बिना छुटकारा नहीं होता। जिन बन्धुजनों अथवा पुत्रादि के लिए पाप किये जाते हैं वे फल-भोग के समय दुःख में हिस्सा नहीं लेते । जो यह सोचते हैं कि 'अभी क्या है, बाद में-पिछली अवस्था में धर्म कर लेंगे,' वे मृत्यु के समय पछतावेंगे । इसलिए प्रमाद को छोड़ कर धर्म का आचरण करो" (उत्तरा० ४)। - "यह निश्चित है कि धन-संपत्ति और कुटुम्ब को छोड़ कर परलोक जाना पड़ेगा, तो फिर इस कुटुम्ब और वैभव में क्यों आसक्त हो रहे हो? यह जीवन और रूप बिजली के चमत्कार के समान चंचल है, फिर इस पर क्यों मोहित हो रहे हो ? भव्य ! स्त्री. पत्र, मित्र और बान्धव, जीते जी ही साथी होते हैं, मरने पर कोई साथ नहीं जाते । पूत्र के मरने पर पिता बड़े दुःख के साथ उसे घर से निकाल कर जला देता है, इसी प्रकार पिता के मरने पर पुत्र दुखित हो कर पिता को निकाल देता है और मरने के बाद उसकी संपत्ति का स्वामी बन कर उपभोग करता है । जिस धन और स्त्री पर मनुष्य मोहित
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