Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इन्द्रभूति आदि गणधरों की दीक्षा
७ मौर्यपुत्र भी अपने साढ़े तीन सौ छात्रों के साथ उपस्थित हुए । भगवान् ने कहा
"तुम्हें देवों के अस्तित्व में सन्देह है । परन्तु देव तो यहाँ तुम्हारे समक्ष उपस्थित हैं । तुमने पहले देवों को साक्षात् नहीं देखा । इसका कारण यह कि एक तो मनुष्यलोक को दुर्गन्ध बाधक है, दूसरे देवलोक के पाँचों इन्द्रियों के वादिन्त्रादि विलास में रत रहने से वे देवलोक से यहाँ प्रायः नहीं आते । इससे अभाव नहीं मानना चाहिए । यों अरिहंतादि के प्रभाव से देव आते भी हैं।'
मौर्यपुत्र समझ गए और अपने साढ़े तीन सौ छात्रों के साथ दीक्षित हो कर सातवें गणधर बने ।
८ अपित को भगवान् ने कहा,-तुम नरक गति नहीं मानते । परन्तु नरक गति भी है । नारक जीव अत्यंत पराधीन हैं। इसलिए वे यहाँ नहीं आ सकते और तुम्हारे जैसे मनुष्य नारक तक पहुँच नहीं सकते । वे प्रत्यक्ष ज्ञानी के अतिरिक्त अन्य मनुष्यों के देखने में नहीं आते । हां, युक्तिगम्य हैं । क्षायिक ज्ञानवाले उन्हें प्रत्यक्ष देखते हैं । क्षायिक ज्ञानी इस मनुष्य लोक में भी हैं । मैं स्वयं तुम्हारी शंका प्रकट कर रहा हूँ। अतएव तुम्हें सन्देहातीत होना चाहिये."
अकंपितजी अपने तीन सौ शिष्यों के साथ प्रवजित होकर भगवान् के आठवें गणधर हुए।
६ अचलभ्राता को भगवान् ने कहा-"तुम्हें पुण्य और पाप में सन्देह नहीं करना चाहिए । पुण्य और पाप का फल तो संसार में प्रत्यक्ष दिखाई देता है । दीर्घ आयुष्य, आरोग्यता, धन, रूप, उत्तम कुल में जन्म आदि पुण्य-फल और इनके विपरीत पापफल प्रत्यक्ष है । इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये।" . .
अचलभ्राता अपने तीन सौ शिष्यों सहित दीक्षित हुए । वे नौवें गणधर हुए।
१० मेतार्य से भगवान् ने कहा-"तुम्हें भवान्तर में प्राप्त होने रूप परलोक मान्य नहीं है। तुम देहविलय के साथ ही जीव को भी नष्ट होना मानते हो, इसलिए परलोक नहीं मानते । तुम्हारी मान्यता असत्य है । जीव की स्थिति एवं स्वरूप सभी भूतों से भिन्न है। सभी भूतों को एकत्रित करने पर भी उनमें से चेतना उत्पन्न नहीं होती । बिना चेतना के जीव कैसे हो ? चेतना जीव का धर्म है । यह भूतों से भिन्न है। चेतनावंत जीव परलोक प्राप्त करता हैं और जातिस्मरणादि ज्ञान से पूर्वभव का स्मरण होता है।"
भेतार्यजी भी तीन सौ छात्रों के साथ दीक्षित हुए । ये दसवें गणधर हुए । ११ प्रभासजी से भगवान् ने कहा-"तुम्हें मोक्ष में सन्देह है । परन्तु बन्धनों के
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