Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चन्दनबाला चरित्र x x राजकुमारी से दासी သတိုးကျောကွဲ၊ား PFPPFFFFFFPာာာာာ
किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की और शान्तभाव से सहन करती रही । मूला क्रोध में सुलगती हुई उसे पीटने लगी | मारकूट कर उसके वस्त्र फाड़ दिये और धकेलती हुई एक एकान्त अन्धेरे कक्ष में ले गई। वहाँ ले जा कर उसके पांवों में बेड़ी डाल दी और किवाड़ बन्द कर के ताला लगा दिया। उसके बाद उसने दास-दासियों से कहा--' "यदि किसी ने भी इस घटना की बात सेठ या किसी के सामने कही, तो उसे कठोर दण्ड दे कर निकाल दिया जायगा ।" इस प्रकार अपनी योजना पूरी कर के मूला पीहर चली गई । चन्दना अंधेरी कोठरी में पड़ी हुई अपने भाग्य को रोती रही ।
संध्या समय सेठ घर आये । उन्हें न तो मूला दिखाई दी और न चन्दना ही । उन्होने सोचा - 'कहीं गई होगी ।' दूसरे दिन भी दिखाई नहीं दी, तो सेविका से पूछा, सेविका ने सेठानी के पीहर जाने का तो कहा, परन्तु चन्दना के विषय में अनभिज्ञता बतलाई | किसी प्रकार मन को समझा कर सेठ दूकान पर चले गये । वह दिन भी यों ही निकल गया । तीन दिन तक चन्दना का पता नहीं लगा, तो सेठ को चिन्ता के साथ कुछ
अनिष्ट की आशंका हुई । वे विचलित हो गए । उन्होने सेवकों से रोषपूर्वक पूछा --
२१३.
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' बताओ चन्दना कहाँ है ? यदि तुमने जानते हुए भी नहीं बताया और चन्दना का कुछ अनिष्ट हो गया, तो मैं तुम सब को कठोरतम दण्ड दूंगा । सच्ची बात बताने में तुम्हें कोई संकोच नहीं करना चाहिये ।"
सेठ के दयालु स्वभाव को वे जानते थे । उनके मन में सेठ का उतना भय नहीं था, जितना सेठानी के रोष का पात्र बनने में था । अन्य तो सब चुप रहे, परन्तु एक वृद्धा दासी से नहीं रहा गया । उसने सोचा- - " अब में तो मृत्यु के निकट पहुँच चुकी । सेठानी बिगड़े, तो मेरा क्या कर लेगी? एक दुःखी बाला का भला करने से मैं क्यों चुकूं ?" उसने सेठ को पूरी घटना सुना दो और वह स्थान दिखा दिया -- जहाँ चन्दना को बन्द किया
गया था ।
सेठ तत्काल अन्धेरी कोठरी पर आये और उसका द्वार खोला, तो उन्हें टूटी हुई लता के समान भूमि पर पड़ी हुई चन्दना दिखाई दी । भूख-प्यास से पीड़ित, म्लान, बेड़ी से जकड़ी हुई और आँखों से आँसू बहाती हुई चन्दना को देख कर सेठ की छाती भर आई और उनकी आँखों से भी आंसू निकल पड़े। उन्होंने सान्त्वना देते हुए कहा ;
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"बेटी ! तेरी यह दशा ? मैं नहीं जानता था कि तू इतने घोर कष्ट में है । अब तू धीरज धर । मैं अभी तेरे लिये भोजन लाता हूँ ।"
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