Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र-भाग ३ ਉਰਿ ਰਾਉਨ ਰਿbਰਿ ਵਰਿਰਿਓ <abb <bbb <asbic (b<<bਰਿਵਰਿਵਰਿਰਿ ਉਰਵਰ ਵਰ ਮkhetesh xh thbbbbbਪੈਣ ਵbਣbਉਣਇਤਾ ਦੀ बाहर भगवान् भिक्षु की महाप्रतिमा धारण कर के एकाग्रतापूर्वक ध्यान-मग्न हो कर खड़े हैं । भगवान् समिति-गुप्ति से युक्त हो कर क्रोधादि कषायों को नियन्त्रित कर के नष्ट करने में लगे हए हैं। उनकी दृढ़ता, निश्चलता, एकाग्रता और महान सहनशीलता इतनी निश्चल है कि जिससे सभी देव, दानव, यक्ष, राक्षस, मनुष्य एवं तीनों लोक मिल कर भी चलायमान करने में समर्थ नहीं हैं।"
इन्द्र की बात का समर्थन देव-सभा के सदस्यों ने किया । किन्तु इन्द्र के ही 'संगम' नाम के एक सामानिक देव ने उस पर विश्वास नहीं किया। वह अभव्य और गाढ़मिथ्यात्वी था । उसने कुपित हो कर कहा;--
देवेन्द्र ! कभी-कभी तो आप भी किसी की प्रशंसा करने लगते हैं, तब एक ही धारा में वह जाते हैं और औचित्य की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखते । क्या औदारिकशरीरी मनुष्य में इतना धैर्य साहस और बल हो सकता है कि वह देव-शक्ति के सम्मुख भी अडिग रह सके ? जब कि आप समस्त देव-दानवादि तीनों लोक के शक्तिशाली तत्त्वों से भी उस हाड़-मांस के घृणित पुतले की शक्ति अधिक बता रहे हैं ?"
“जिसके शिखर ऊर्ध्वलोक में पहुंचे हुए और जिसका मूल अधोलोक में पहुँच गया है, ऐसे पर्वतराज सुमेरु को भी एक मिट्टी के ढेले के समान उठा कर फेंक देने और समस्त पर्वत तथा पृथ्वी को समुद्र में डुबो देने और समुद्र को एक चुल्लु में पी जाने की शक्ति रखने वाले देव से भी उन मनुष्य की शक्ति बढ़ गई ?"
"नहीं, कदापि नहीं । मैं देखता हूँ आपकी बात की सच्चाई कि कितना दम हैउस साधु में।"
रोष में धमधमाता हुआ संगम उठा और सभा छोड़ कर चल दिया। शकेन्द्र ने सोचा ‘देख लेने दो इसे भी भगवान् की शक्ति । भगवान् तो स्वयं उपसर्गों के सम्मुख होने वाले हैं। वे किसी की सहायता चाहते ही नहीं। इस दुर्बुद्धि को भी भगवान के बल का पता लग जायगा'-इस प्रकार सोच कर शक्रेन्द्र ने उपेक्षा कर दी।
संगम के भयानक उपसर्ग
क्रोध में धमधमाता हुआ संगम भगवान् को विचलित करने के लिए चला। यह उग्र रूप धारण कर के देव-देवियों को लांघता हुआ और मार्ग में रहे हुओं को भयभीत करता हुआ तथा ग्रहमंडल को विचलित करता हुआ प्रभु के निकट आया। भगवान को
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