Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भगवान् का महान् विकट अभिग्रह
'भगवन् ! इस दुर्घटना से मेरी आत्मा का महान् हित हुआ है । में अज्ञानी था । पूर्वभव के अज्ञान-तप के कारण ही में असुरेन्द्र हुआ । उस अज्ञान से ही मैने शक्रेन्द्र को पद - भ्रष्ट करने का दुःसाहस किया और वह दुःसाहस ही मुझे श्रीचरणों में ले आया । इन परम पवित्र चरणों ने मेरे अज्ञान का पर्दा हटा दिया। यदि ये श्रीचरण मुझे पूर्व भव में मिल जाते, तो मैं असुर क्यों होता ? अच्युतेन्द्र या कल्पातीत ही हो जाता ।"
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'परम तारक ! अब तो मुझे अहमिन्द्र बनने की भी इच्छा नहीं रही । आप जैसे जगदीश्वर को पा कर ही में धन्य हो गया । यह दुःसाहस भी मेरे लिये महा लाभ दायक हो गया । हे नाथ ! आपका शरण मुझे निरन्तर प्राप्त होता रहे।"
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बार-बार नमस्कार कर के चमरेन्द्र स्वस्थान आया। अपनी देवसभा में सिंहासन पर, नीचा मुँह किये बैठा रहा । उसका स्वागत करने एवं क्षेमकुशल पूछने आये हुए सामानिक देवों से बोला ;
“हे देवों ! आपने शक्रेन्द्र के विषय में जो कुछ कहा था, वह वैसा ही है । परन्तु मैं अज्ञानी था। मैंने आपकी बात नहीं मानी । मैं शक्रेन्द्र के कोप को सहन नहीं कर सका और भाग कर भगवान् महावीर के शरण में गया । इसी से मैं बच सका हूँ । अब हम भगवान् के समीप चलें और भक्तिपूर्वक वन्दना - नमस्कार करें ।"
चमरेन्द्र अपने परिवार सहित भगवान् के समीप आया और उत्कृष्ट भक्तिपूर्वक भगवान् को नमस्कार किया । गुणगान किया और हर्ष व्यक्त करता हुआ लौट आया । भगवान् सुंसुमार नगर से विहार कर के, क्रमशः चलते हुए भोगपुर पधारे । महेन्द्र नामक क्षत्रिय जो क्रूर स्वभाव का था, भगवान् को देखते ही क्रुद्ध हुआ और पीटने को उद्यत हुआ । उस समय सनत्कुमारेन्द्र, प्रभु के दर्शन करने आया था । उसने महेन्द्र को भगवान् पर प्रहार करने के लिए जाते देखा, तो उसे तिरस्कार पूर्वक हटा दिया और भक्तिपूर्वक वन्दन- नमस्कार कर के लौट गया । वहाँ से भगवान् नन्दी गाँव होते हुए मेढक गाँव पधारें। वहाँ भी एक ग्वाला भगवान् पर प्रहार करने को तत्पर हुआ, परन्तु इन्द्र की सावधानी से वह भी रुका । मेढक ग्राम से भगवान् कौशाम्बी पधारे ।
भगवान् का महान विकट अभिग्रह
कौशाम्बी नगरी में 'शतानिक' नाम का राजा था। वह महान् योद्धा था। चेटक नरेश की पुत्री मृगावती उसकी रानी थी। वह शीलवती सुश्राविका थी। राज्य के मन्त्री
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